Thursday, December 13, 2012
'पंजा' या 'छक्का ?
litrature, politics, humourous
irfan pathan,
modi,
Politics,
Punch or Sixer?,
Rubai
Thursday, October 4, 2012
ग़ैरतमंद !
ग़ैरतमंद !
उसने कहा ''हलक़तगिरी''
करदो शुरू गांधीगिरी,
"मिलता नहीं ''सर्किट कोई !"
करते हो 'मत' का 'दान' भी ?
उसने कहा "फुर्सत नहीं"
करदो शुरू तुम भी 'खनन'
"उसमे भी अब बरकत नहीं"
बेशर्म हो!, कूदो, मरो!!
"ऊंचा कोई पर्वत नही!"
क्रिकेट में है फायदा !
"चारो तरफ CCTV !"
मंगल पे जाना चाहोगे ?
"गद्दों की याँ पर क्या कमी !"
लड़ते इलेक्शन क्यों नहीं?
"बोगस कहाँ वोटिंग रही?"
चौराहे पर हो क्यों डटे?
"मिलती नहीं पतली गली"
सब कुछ ख़तम क्या हो गया ?
"बस शेष है ब्लागिरी* *Blogging ब्लागिरी
करता हूँ वो ही रात-दिन,
देते कमेन्ट है 'हाशमी' "
-मन्सूर अली हाशमी
Wednesday, August 1, 2012
Tuesday, July 31, 2012
ऐसा बोलेंगा तो !
ऐसा बोलेंगा तो !
'कांसो'* पे भी संतोष जो करले; हमी तो है, *[कांस्य पदक]
'सोने' से अपने 'ख़्वाब' को भरले; हमी तो है.
'मनरेगा' से भी पेट जो भर ले हमी तो है, [म. गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना]
भेंसो के चारे को भी जो चर ले हमी तो है.
रिश्वत से काम लेने की आदत सी पड़ गयी,
कागज़ की नाव पर भी जो तर ले हमी तो है.
"पेशाब कर रहा है गधा इक खड़ा हुआ",
दीवारों पे लिखा हुआ पढ़ ले हमी तो है !
'बोफोर्स' हो , 'खनन' कि वो 2G ही क्यों न हो,
'आदर्श' हरइक घपले को कर ले हमी तो है.
--mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
Ghazal,
Mirror,
self introspection
Friday, July 27, 2012
वानप्रस्थ आश्रम !
वानप्रस्थ आश्रम !
दुष्करम(!) - सुफलम(?)
शुक्रवारी शुभम,
पुत्र-रत्न, प्राप्तम.
'डी.एन.ए.' बेरहम ,
तौड़ डाले भरम.
है विजित 'शेखरम',
बाप है बेशरम.
रास्ता इक बचा,
वानप्रस्थ आश्रम!
litrature, politics, humourous
DNA Test,
N.D.Tiwari,
Poem,
वानप्रस्थ आश्रम
Saturday, July 14, 2012
मान सरोवर [Mansoor's OVER !]
मानसर = मान सरोवर [ मनसूर ]
गिरता हुआ स्तर नज़र, आया है शिष्टाचार में,
'विद्यार्थी' शिक्षक से अब कहता है, मेरी 'मान Sir'.
'सागर' भी कहते 'झील' को, कोई 'नहर' तो 'मानसर',
'बहना' ही है इसका चरित्र, सर-सर-सरर, सर-सर-सरर.
'मानस' 'सरोवर' से मिला, ज्ञानी बना, जीवन सफल,
दुःख सह के जो 'तीरथ' गया, है कामयाब उसका सफ़र.
'मन्सूर' का भी लक्ष्य है, जीवन 'सरोवर' सा रहे,
ठहराव न आये कभी, कितनी भी मुशकिल हो डगर.
[मिलता उधार है यहाँ, शर्ते बड़ी आसानतर,
ले-ले क्रेडिट कार्ड और, तू एश से करना बसर.]
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mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
कैलाश मानसरोवर
Tuesday, July 10, 2012
तब और अब
"मेरे दफ्तर में इक लड़की है , नाम है राधिका" ...पर........."पेरोडी"
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तब और अब
मेरे घर में एक पत्नी है, नाम है 'मलिका'
छः 'भय्यो' की 'बहना' है, वाह भई, वाह भई, वाह !
गोरी है, चिट्टी है, वाह भई, वाह भई, वाह.
सबसे पहले मिली जहां, 'हाजी-माँ' का घर था,
इंटरव्यू के लिए गया, लेकिन मन में डर था,
छः 'सालों' की फ़ौज खड़ी थी, वाह भई, वाह भई, वाह!
चाय लिए जब आई पहने 'हरा दुपट्टा'; व़ो ,
हाथों में कम्पन थी उसके, मन में था खटका,
मार के लाई थी 'बालाई'* वाह भई, वाह भई वाह !
*बालाई= मलाई
बालाई नदारद , चीनी कम डलती है,
'कप' भी अपना ख़ुद धोते है, वाह भई, वाह भई, वाह !
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-- mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
a Parody,
तब और अब,
हरा दुपट्टा
Thursday, July 5, 2012
con (कण) CERN
con (कण) CERN
-- mansoor ali hashmi
कितने टनों को तौड़ कर इक 'कण' को पा लिया है,
हर्षित है दुनिया वाले, 'जीवन' को पा लिया है !
कण-कण में था वो पहले, अब 'कण' वो बन गया है,
भगवन ने भी अब अपने 'भगवन' को पा लिया है !!
Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies.
If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}-- mansoor ali hashmi
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CERN,
GOD PARTICLE,
SATYENDRA NATH BOSE,
SECRET OF UNIVERSE
Wednesday, June 27, 2012
पैसे वसूल
पैसे वसूल
खेल; अभी जारी, मगर पैसे वसूल !
जो नहीं हासिल लुभाता है बहुत,
मिल गया जो वह तो बस मानिन्दे धूल.
हो रही बातें , परिवर्तन की फिर ,
अबकि तो बस, हो फ़क़त आमूल-चूल.
सख्त हो कानून सबके वास्ते,
ख़ुद पे बस लागू न हो कोई भी 'रूल'.
है निरंतर, नेको- बद में एक जंग,
'बू-लहब'* जब भी हुए, आए रसूल. *[बद किरदार]
.
'हॉट' थे जो 'केक' , बासी हो रहे,
बेचते है अब वो 'ठंडा' , कूल-कूल.
'बाबा' हो कि 'पादरी' या 'मौलवी'*, [*निर्मल, पॉल वगैरह जैसे]]
कर रहे है बात सब ही उल-जलूल,
तोड़ते, खाते, पचाते भी दिखे;
फ़ल - जिन्होंने बोये थे केवल बबूल.
खाए-पीये बिन ही जो तोड़े ग्लास,
बेवजह ही देते है बातों को तूल*, [*विस्तार ]
'ब्याज' से 'नेकी' कमा कर, ख़ुश बहुत ,
मुफ्त का 'आया', 'गया' बाक़ी है मूल.
--mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
Compromise,
hypocrisy,
ढोंग
Tuesday, June 5, 2012
चर्चा के वास्ते अभी 'पर्यावरण' तो है !
चर्चा के वास्ते अभी 'पर्यावरण' तो है !
[अजित वडनेरकरजी की आज की पोस्ट "कुलीनों का पर्यावरण" से प्रभावित]
इज्ज़त बची हुई कि कोई 'आवरण' तो है,
'प्रदूषित' वर्ना अपने सभी आचरण तो है.
"चर्चा" कुलीन अब नहीं करते ग़रीब की,
स्तर बुलंद जिसका वो ''पर्यावरण'' तो है.
सुनते है आजकल ये बहुत ही ख़राब है,
'माहौल' जिसका नाम वो 'वातावरण' तो है.
मरते नहीं कि शर्म ही अब मर चुकी जनाब,
'अनशन' का उनके नाम मगर 'आमरण' तो है.
'बाबा' किसी के हाथ में आते नहीं मगर,
हाथों के अपनी पहुँच में उनके 'चरण' तो है.
'बाबी' भी अब तो मिल गयी है, 'राधे' नाम की,
'बाबाओं' से निराश ! तो कोई शरण तो है.
बदले है अर्थ, प्रथा तो जारी है आज भी,
'रस्मो' के साथ ही सही, 'चीर-हरण' तो है.
[हुस्नो जमाल उम्र की जब नज्र* हो गए, *[भेंट]
शौखी भरी अदा है, अभी बांकपन तो है.]
--mansoor ali hashmi [from Kuwait]
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Changing Values,
Environment,
राधे माँ
Tuesday, May 29, 2012
क्या कह रहे है आप !
"कमाल तकियाकलाम का"- वडनेरकर जी के 'तकिये' पर मेरा 'कलाम' मुलाहिजा फरमाए:-
क्या कह रहे है आप !
[तकिया कलाम मुझको बहुत नापसंद है,
सुनलो ! कि अपनी बात मै दोहराता नहीं हूँ.]
फिक्सिंग का बोल-बाला है, "क्या कह रहे है आप !"
'छक्के' पे नाचे 'बाला' है, "क्या कह रहे है आप !"'
सच्चे का मुंह काला है, "क्या कह रहे है आप !"
डाकू के हाथ 'माला' है, "क्या कह रहे है आप !"
'ठंडा', 'गरम-मसाला' है, "क्या कह रहे है आप !"
'नेता' भी उनका 'साला' है, "क्या कह रहे है आप !"
'रुपया' हमारा 'काला' है, "क्या कह रहे है आप !"
'बाबाओं' से घोटाला है, "क्या कह रहे है आप !"
'आदर्श'{!} इकत्तीस 'माला' है, "क्या कह रहे है आप !"
'मुन्सिफ' के मुंह पे ताला है, ''क्या कह रहे है आप !"
लैला ने कुत्ता पाला है, "क्या कह रहे है आप !"
पक्की सड़क पे नाला है, "क्या कह रहे है आप !"
'मन-मोहिनी' दिवाला है, "क्या कह रहे है आप !"
'धंधा' तो बस, 'हवाला' है, "क्या कह रहे है आप !"
'निर्मल' बड़ा निराला है, "क्या कह रहे है आप !"
चारो तरफ ही "जाला" है, "सच कह रहे है आप !"
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चौपाई
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'तकिया' करे 'कलाम' पे फिर चाहते है 'वो'*, *[BJP]
पहले भी ख़ूब गुज़री है, इस 'मेजबाँ' के साथ,
'दादा*-व्-संगमा' तो है "थैली" से एक ही ! *[प्रणब]
शायद के 'पलटे दिन' भी, फिर इस मेहरबाँ के साथ !! ------------------------------ ------------------------------
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mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
current affairs
Sunday, May 27, 2012
रूपये की व्यथा
रूपये की व्यथा
गिर कर भी मैं हारा नहीं
उठता रहा, चलता रहा,
घटता हुआ रुपया हूँ मैं,
डॉलर से बस दबता रहा.
अपनों ने ही काला किया,
मैं था खरा, खोटा किया,
उसने किया है बेवतन,
जिनको सदा पाला किया.
वापस मुझे ले आईये,
इज्ज़त मुझे दिलवाईये,
"अर्थ" इक नया मिल जायेगा,
फिर से मुझे अपनाईये.
--mansoor ali hashmi
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If
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picture.}--mansoor ali hashmi
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Agony of Rupee,
Black Money
Friday, May 25, 2012
ये नुस्ख़ा ज़रा आज़मा लीजिये !
ये नुस्ख़ा ज़रा आज़मा लीजिये !
दिया कम, ज़्यादा लिया कीजिये,
बचे तो 'स्विस' में जमा कीजिए.
['सुविधा जनक' थी 'स्विस' लेकिन अब-
तो 'मारिशिय्स' में जमा कीजिए.]
'नतीजे' से मतलब नहीं कुछ रहा,
अजी, आप 'फिक्सिंग' किया कीजिए.
नहीं कोई 'अध्यक्ष' मिलता अगर,
'नियम' ही नया फिर बना लीजिये.
बढ़े दाम तेलों के, घबराओ मत,
कभी सायकिल भी चला लीजिये.
जो 'टेबल के नीचे'* ही तय होना है, [* under the table]
घटा दीजिये, कुछ बढ़ा लीजिये.
अगर 'शाह' हो तो ये हंगामा क्यों ?
ज़रा 'रुख़' से पर्दा हटा लीजिये !
मिले 'मुफ्त' में ! रहम करना नहीं,
अजी, 'माल' सारा पचा लीजिये.
है बिजली की किल्लत तो पानी भी कम,
अजी, "धूप" में ही नहा लीजिये.
[है बीमार 'रूपया' सबर कीजिए,
दवा की जगह अब दुआ कीजिए.]
.--mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
CORRUPTION,
Devaluation of Rupee,
Shahrukh,
soar oil prices
Sunday, May 13, 2012
'कृपा-कृपा' ही अब दोहराता हूँ मैं !
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
हुस्न सुंदरता के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता है। सुंदरता यदि शारीरिक हो सकती है तो मानसिक और व्यवहारिक भी हो सकती है। यह लेखकों की ही कमी है कि वे मानसिक और व्यवहारिक सुंदरता के लिए इस शब्द का प्रयोग बिरले ही करते हैं।
'खुमार बाराबंकवी' का यह शेर था ज़ेहन में जब द्विवेदी जी की उपरोक्त टिप्पणी पढ़ी :
"हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए,
इश्क के मगफिरत की दुआ कीजिए."
लेकिन द्विवेदीजी की सलाह पर अमल करते हुए कुछ इस तरह लिख गया, उनसे मा'ज़रत के साथ पेश है:
हुस्न 'प्रयत्न' से क्यूँ न हासिल करूं ?
'लवली-लवली' क्रीम लेके आया हूँ मैं.
'आशीर्वाद' ही लेता रहा अब तलक,
'कृपा-कृपा' ही अब दोहराता हूँ मैं !
'हुस्नो-अख़लाक़'* आदर्श जब से से बने, [*सद आचरण]
'धर्म ' अपना इसी को बताता हूँ मैं.
'मानसिक-सौंदर्य' के प्रदर्शन के लिए,
KBC* को एस एम् एस कर आया हूँ मैं. * [कौन बनेगा.....]
दोगलेपन के चोले से निकला तभी,
इक नए 'हाशमीजी' ! को पाया हूँ मैं.
mansoor ali hashmi
Thursday, May 10, 2012
खुशियों के और उम्मीदों के गाये तराने सब.
रग-रग की खबर ! यानी 'शब्दों का सफ़र' , जी हां! 'शब्दों' का ओपरेशन यही होता है. प्रस्तुत है आज की पोस्ट पर प्रतिक्रिया:-
'माँ' की हमारी आँखे भी द्रवित है इन दिनों.
'कोलेस्ट्रल' जमा है 'रगों' में , इसी लिए,
रफ़्तार अपने देश की मद्धम सी हो रही,
'आचार' है 'भ्रष्ट' फिर 'संवेदनहीनता',
मदहोश रहनुमा है तो जनता भी सो रही,
'नलिनी', 'रेनुकाएं'* भी है प्रदूषित इन दिनों, {*नदी के अन्य नाम }
'प्रवाह', कोलेस्ट्रल से है, प्रभावित इन दिनों.
अपनी रगों में खून की गर्दिश भी कम हुई,
'माँ' की हमारी आँखे भी द्रवित है इन दिनों.
'आवेग' के लिए है ज़रूरत 'ऋ'षी की अब,
संस्कारों से 'सिंचित' हो, ये धरती ए मेरे रब,
'बाबाओं' से नजात मिले अब तो देश को,
खुशियों के और उम्मीदों के गाये तराने सब.
-मंसूर अली हाश्मी
Wednesday, May 9, 2012
हासिले सफ़र !
आमने सामने |
"दस मिनट की मुलाकात के लिये हजार मील की यात्रा करो - एक शानदार रिश्ता ई-मेल से नहीं बनता।" रॉबिन शर्मा के ब्लॉग से।
[ 'ज्ञानोक्ति' के आज के विचार से प्रभावित्]
'फेसबुक' पर जो सूरत दिखी,
Chat फिर रोज़ होने लगी ,
दिल की बेताबियाँ जब बढ़ी,
फिर तो 'मिलने' ही की ठान ली.
'आमने-सामने' थे मगर,
सूरते दोनों अनजान सी,
ए.के. हंगल से मजनू मियाँ,
बीबी टुनटुन सी लैला लगी.
चाय पी, खाए बिस्किट मगर,
बात मौसम पे करते रहे,
'केडबरी' साथ लाये थे जो,
साथ अपने ही फिर ले गए !
Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies.
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-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
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नेट के रिश्ते,
फेसबुक
Sunday, April 22, 2012
आज का भजन
आज का भजन
[भजन का 'अर्थ' समझने के लिए ...
‘कुछ’ तो हो सकता है निर्मल नरुला का
एकोऽहम्
की 'कुंजी' अवश्य खरीदे ! ]अब और तू 'निर्मल' को 'न'-'रुला',
तुझ पर भी होवेगी 'कृपा',
जो बीत गया सो बीत गया,
मत शोर मचा, मत शोर मचा.
बीता कल तो था 'हज़ारी' का,
'बाबा' है ये तो 'करोड़ी' का,
एक बेग 'ब्लेक' ज़रा ले आ,
जितना चाहे उसमे भरजा.
कर चुके 'सरस्वती' की वंदना,
'लक्ष्मी' संग 'उल्लू' पर चढ़ जा.
इस 'दूध' में 'फेन' नहीं है ज़रा,
आजा, मुख पर 'मक्खन' मलजा !
'कागज़' पत्तर तू फाड़ दे सब,
'इन्साफ' में लगती देर बहुत,
अब क्या 'उपमा' दे, कबीर भगत ?
'रूई' भी हुई 'अग्नि-रोधक' !
http://aatm-manthan.com
litrature, politics, humourous
कबीर,
निर्मल बाबा,
भजन
Monday, April 16, 2012
खींचो किसी की टांग तो बनती है कविता !
खींचो किसी की टांग तो बनती है कविता !
अजित वडनेरकर जी, कवियों से पंगा लेने 'ब्लेक होल' में जाने की हिम्मत नहीं, 'कविता' ही की कुछ ख़बर इस तरह ली है.....आपकी 'अकविता' [Face Book पर ]
से प्रेरणा पाकर...
शब्दों से छेड़-छाड़ से 'बनती' है कविता,
अर्थो से भी खाली हो तो 'बिकती' है कविता.
बे-दाम ब्लागों पे अब छपती है कविता,
मंचो पे पढ़ी जाए तो 'दिखती' है कविता.
'काका'* कभी पढ़ते थे तो 'हंसती' थी कविता, *हाथरसी
जोकर भी सुनाये है, तो 'रोती' है कविता,
'हूटिंग' अगर हो जाये , बिलखती है कविता,
बिजली जो हुई गुल तो सिसकती है कविता.
नखराली 'शायरा' कभी पढ़ती है कविता,
गिरती है कविता, कभी पड़ती है कविता.
'बलात' इस का 'कार' भी होते हुए देखा,
लिक्खे कोई, नाम 'उनके' ही, छपती है कविता.
सब की ही बनी जाती है भाभी, ये 'सविता'
शादी से भी पहले अभी जनती है 'कविता'.
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mansoor ali hashmi
Thursday, April 12, 2012
कुछ कर तो रहे है !
कुछ कर तो रहे है !
'बालाए ताक़' रखके* 'बला' टाल रहे है, *कोर्ट के निर्णय को
'अफज़ल' हो कि 'कस्साब' हो हम पाल रहे है.
'बिंदु' जो कभी थे वो हिमालय से लगे अब,
'रेखाओं' के नीचे जो है, पामाल रहे है.
बदली 'परिभाषा , मनोरंजन की तो देखो,
अब 'बार की बालाओं' को वो 'ताक' रहे है !
============================== ====
बालाई पे बैठे है,कशिश भी है 'बला' की,
हम कूचा-ए-यारां की सड़क नाप रहे है.
गालो पे फ़िदा हो के तो 'बलमा' वो बने थे,
रूख्सार के 'बल'*, 'बालो' से अब ढांप रहे है. *सिलवट
होती 'अल-बला' तो वो टल जाती दुआ से,
अब 'हार'* बन गयी है तो बस जाप रहे है! *माला
'मेहराब' तलक अब तो रसाई नही होती,
'तक' कर ही मियाँ हांप रहे, काँप रहे है !
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--mansoor ali hashmi
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Between the Lines
Wednesday, April 4, 2012
बदलती परिभाषाएं !
बदलती परिभाषाएं !
पारदर्शिता' का सन्देश हुआ यूं व्यापक,
नग्न होने को ज़रूरत नहीं हम्माम की अब.
'साफगोई' का चलन जब से बढ़ा, ये देखा,
गालियों से भी क़दर बढ़ती है, इंसान की अब.
हुस्न के, जिस्म के, बदले है मआनी कैसे,
लो उठा शोर,कि शर्ट फटती है, 'सलमान' की अब.
--------xxx----------
बदलता ज़माना !
'चारागर' ही को ज़रूरत है, मुआलिज की अभी,
खुद 'मुआलिज' ही भरोसे पे है भगवान के अब.
अब 'रफूगर' का गिरेबाँ ही मिला चाक हमें,
पैराहन फैंक दिया, 'मजनूं' ने किस शान से अब
'दार्शनिक' ख़ुद को दिखाने पे तुले है अबतो,
थे जो 'प्रसिद्द', वही दिखते है, अनजान से अब.
अब तो 'ईमान' की दाढ़ी में दिखे है तिनके,
और 'चोरो' को निगहबानी के फरमान है अब.
'राहबर' है मुतलाशी, किसी भटके जन का,
'राहज़न', फर्मारवाओं के जो मेहमान है अब.
'ज्ञान-भंडार' सुरक्षित हुए अब 'चिप्सो' में,
'पुस्तकालय', नज़र आते है, वीरान से अब.
'सब्र' ने फाड़ दिया अपना ही दामन अबतो,
'जब्र' के खेमे में होने लगी सुनवाई है अब.
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-- mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
Changing Definition,
Hammam,
Stripping of Shirts
Friday, March 23, 2012
परीक्षा .....चरवाहे की !
परीक्षा .....चरवाहे की !
आज [२३-०३-२०१२] के समाचार पत्रों से प्रेरित.....
# अपनी 'भेड़ो' को हांक लाये है,
'पर्वतो' से ये भाग आये है.
# भेड़े वैसे तो शोर करती नहीं,
फिर भी 'गुपचुप' हंकाल लाये है.
# 'ऊन' है, 'दूध-ओ-गोश्त' है इनमे,
इस लिए तो ये दिल लुभाए है.
# 'भेड़े' बनकर न 'घोड़े' बिक जाए,
खौफ़ इनको यही सताए है.
# 'चारागाह' और भी है 'चरवाहे',
मुफ्त का 'चारा' सब को भाये है.
# 'पंजा' बालो को नोच ले न कहीं,
'संघ' के आश्रय में लाये है,
# खौफ़ है बेवफाई का इनसे !
यूं 'महाकाल' याद आये है !!
--mansoor ali hashmi
litrature, politics, humourous
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