अब ब्लागों पे जंग जारी है,
धर्म वालो में बेकरारी है।
अब निबाह ले हम अपना राज-धरम ,
कौमवादो की बन्टाढारी है.
चीर-हरण हो रहा द्रोपदी का,
देखिये कितनी लम्बी साड़ी है?
मूल्य चढ़ते है ,कद्रें* गिरती है,
अर्थ-नीति पे कौन भारी है?
अपने घर में भी हम नही महफूज़,
जंग किससे ये अब हमारी है।
लोक का तंत्र ही सफल होगा,
गिनते जाओ ये मत-शुमारी है,
आग अब 'ताज'' तक नही पहुंचे ,
आपकी-मेरी जिम्मेदारी है।
*values
-मंसूर अली हाशमी