रूपये की व्यथा
गिर कर भी मैं हारा नहीं
उठता रहा, चलता रहा,
घटता हुआ रुपया हूँ मैं,
डॉलर से बस दबता रहा.
अपनों ने ही काला किया,
मैं था खरा, खोटा किया,
उसने किया है बेवतन,
जिनको सदा पाला किया.
वापस मुझे ले आईये,
इज्ज़त मुझे दिलवाईये,
"अर्थ" इक नया मिल जायेगा,
फिर से मुझे अपनाईये.
--mansoor ali hashmi
Note: {Pictures
have been used for educational and non profit
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any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the
picture.}--mansoor ali hashmi
7 comments:
☺☺☺
रुपये पर वास्तव में दया आ रही है। पर वे जो बाहर ले गए उन्हें नहीं आएगी।
रुपए का दारिद्र्य, रुपए की दारुणता,
रुपए का करुण विलाप....
रुपये की हालत वोटर जैसी हो गई है !
सौ टका सही कहा हाशमीजी आपने।
wah! very nice!
ati sunder sir
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