ग़ैरतमंद !
उसने कहा ''हलक़तगिरी''
करदो शुरू गांधीगिरी,
"मिलता नहीं ''सर्किट कोई !"
करते हो 'मत' का 'दान' भी ?
उसने कहा "फुर्सत नहीं"
करदो शुरू तुम भी 'खनन'
"उसमे भी अब बरकत नहीं"
बेशर्म हो!, कूदो, मरो!!
"ऊंचा कोई पर्वत नही!"
क्रिकेट में है फायदा !
"चारो तरफ CCTV !"
मंगल पे जाना चाहोगे ?
"गद्दों की याँ पर क्या कमी !"
लड़ते इलेक्शन क्यों नहीं?
"बोगस कहाँ वोटिंग रही?"
चौराहे पर हो क्यों डटे?
"मिलती नहीं पतली गली"
सब कुछ ख़तम क्या हो गया ?
"बस शेष है ब्लागिरी* *Blogging ब्लागिरी
करता हूँ वो ही रात-दिन,
देते कमेन्ट है 'हाशमी' "
-मन्सूर अली हाशमी
7 comments:
वाह हाशमी साहब बहुत बढ़िया
बहुत खूब। आप बाहर थे, कब लौटे?
शुक्र है, ब्लॉगरी शेष है!
काफी रोचक बन पड़ा है।
सब कुछ ख़तम क्या हो गया ?
"बस शेष है ब्लागिरी* *Blogging ब्लागिरी
करता हूँ वो ही रात-दिन,
देते कमेन्ट है 'हाशमी' "
..अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता ही ..बस जिंदगी चलते रहनी चाहिए
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
उम्दा!
सादर निमंत्रण,
अपना बेहतरीन ब्लॉग हिंदी चिट्ठा संकलक में शामिल करें
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