आमने सामने |
"दस मिनट की मुलाकात के लिये हजार मील की यात्रा करो - एक शानदार रिश्ता ई-मेल से नहीं बनता।" रॉबिन शर्मा के ब्लॉग से।
[ 'ज्ञानोक्ति' के आज के विचार से प्रभावित्]
'फेसबुक' पर जो सूरत दिखी,
Chat फिर रोज़ होने लगी ,
दिल की बेताबियाँ जब बढ़ी,
फिर तो 'मिलने' ही की ठान ली.
'आमने-सामने' थे मगर,
सूरते दोनों अनजान सी,
ए.के. हंगल से मजनू मियाँ,
बीबी टुनटुन सी लैला लगी.
चाय पी, खाए बिस्किट मगर,
बात मौसम पे करते रहे,
'केडबरी' साथ लाये थे जो,
साथ अपने ही फिर ले गए !
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-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
6 comments:
'विसाल-ए-यार' का यह मंजर तो खुदा दुश्मन को भी न दिखाए।
तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत !
किताब-ए-सूरत में जो निहां है वही कहा है :)
सूरत पर मरने वालों का आखिर यही अंजाम होगा:)
दिल बेकाबू
हालात बेकाबू
ये सब हुनर की बातें हैं, चालाकियों की बातें हैं ।
बाज वक्त, मौके की नज़ाक़त समझ कर
इन्हें मासूमियत भी कहा जाता है :)
वाह..... ज़बरदस्त!
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