माले मुफ्त - दिले बेरहम!
जो ज़ोर से बाजे है वही थोथा चना है.
आकाश को छूती हुई क्यूँ तेरी अना* है, *[Ego]
तू खाक का पुतला है तू मिटटी से बना है.
'बाबा' के 'चमत्कार' हवाओं में दिखे है!
कहते है पवन पूत भी वायु से जना है.
वायु में बवंडर है तो धरती में है कंपन,
'रामू' तो यह कहते है कि 'डरना भी मना है'.
अब 'कूक' न नगमे है न वो बादे सबा है!
जब फूल न शाख़े है; न फ़ल है न तना है.
अब 'मुफ्त' का खा कर जो हुआ कब्ज़ तो सुन लो,
जुल्लाब लगा देती जो पत्ती; वो 'सना'* है. *[?]
--mansoor ali hashmi