पॉलिसी में अपनी तो ग़ज़ब की ही लचक है !
ठेकों के सभी काम तो होते बे धड़क है.
होगा नमक आटे में कि आटे में नमक है !
डालर ने बिगाड़ी है दशा रूपये की जबसे,
गुज़री है 'चवन्नी', मंद सिक्को की खनक है.
बर आयी 'मुरादे' तो 'रज़ा' की दरे 'शिव'* पर, *[शिवराज सिंह चौहान]
'Modi'fication, उनका भी हो, जो अब भी कड़क है.
'दुश्मन' हो कि 'आतंकी', सुरक्षित नहीं Border,
अपनों ही के हाथो हुई इज्ज़त की हतक है.
--mansoor ali hashmi