[सभी ब्लॉगर साथियों एवं देश वासियों को रक्षाबंधन के पवित्र पर्व की हार्दिक बधाई]
हमने तो ये देखा है !
रुत का ये संदेशा है.
बिकने* को तैय्यार है ये, *[ Horse Trading]
राजनीत इक पेशा है.
'रूप' इसका क'या' खोटा है?
'गिरता' क्यों हमेशा है !
'बुक' जब 'फेस' हुवा है तो
क्यों ये ज़ुल्फ़ परेशा है !
'बंधन' जो है 'रक्षा' का,
एक सूत का रेशा है.
'जूए शीर'* ये लाएगा, *[दूध की नहर]
कोहकनी* ये तेशा* है.
*कोहकनी = फरहाद का ,
* तेशा = बढ़ई का औज़ार
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--mansoor ali hashmi