Showing posts with label tragidy. Show all posts
Showing posts with label tragidy. Show all posts

Friday, August 27, 2010

असमंजस

असमंजस 

रंगों में आतंक भरा है!
भगवा कोई लाल, हरा है.

बेरंगी होना ही अच्छा,
इन्द्र धनुष से तीर चला है,

'मस्जिद' गरचे टूट चुकी है,
बेघर अब भी 'राम लला' है.
बंद है मुट्ठी में जाने क्या! [court verdict]
पत्थर या कि गुड़ का डला है.

महंगाई ! तो घटती, बढ़ती,
देश का कारोबार बढ़ा  है.

रेखा* से नीचे वालो में,  [*BPL]
सपनो का ब्योपार बढ़ा है. 

'राय' पे 'कालिख' का चढ़ जाना!
'साहित्य' भी तो एक 'कला'  है !!

संस्कारो का पैमाना क्या?
एक गधी की आत्म-कथा है !

'अफज़ल' को जल्लाद न मिलता,
कृषक सूली पर टंगा है!

'जयचंद' या 'माधुरी गुप्ता',
अपनों ही ने हमको छला है.

बारहा प्यारा अपना गुलशन,
अपनों ही के हाथ जला है.
मंसूर अली हाश्मी