हर क़दम पर गुनाह के इमकान,
'नेकियों' के भी है बहुत सामान.
क़समें खाना हुआ बड़ा आसान,
थूंक देते है जैसे खाकर पान.
कितना नज़दीक है ख़ुदा तेरा,
ढूँढता फिर रहा है, तू नादान !
चार अनासिर* से है वजूद तेरा, *[तत्वों]
चार ही दिन का, तू भी है मेह्मान.
ख्वाहिशो का हुजूम, तू तनहा,
कम नहीं हो रहे तिरे अरमान.
'साम्पर्दायिक' नहीं है 'बालीवुड',
'ह्रितिक' अकबर, अशोका बनते 'खान'.
मयक़दों में तो शौर है बरपा,
धर्मस्थल क्यों हो रहे वीरान ?
"फ़ैल 'फेलिन'* हो", ये दुआ लब पर, *[Phailin Cyclone]
डूब दरिया में जाए, ये तूफ़ान.
बापू'* भगवान् भी, पति भी बने, *[निराशाराम]
देख-सुन हो रहा हूँ मैं हैरान !
नर ही को मान बैठे 'नारायण'*, *[साईं नारायण]
वो जो 'कामी' भी, धूर्त भी, शैतान!
'बाप' ही ने 'जड़ी' खिलायी थी,
'बेटा' उससे हुआ अधिक बलवान.
अब तो 'मुक्ति' खरीद ही लेंगे,
धर्म वालो ने खोल ली दूकान !
'सूद' , उपकार ऐसे बन जाता,
ले के, करते जो दूसरो को दान !
पेट भरने को काफी 'बत्तीसा'*
हुक्मरानों ने कर दिया फरमान।
*[३२ रूपये/ ज़च्गी के वक़्त खिलाये जाने वाली पौष्टिक खुराक]
जाटो-मुस्लिम में खिंच गयी तलवार,
कौन* चढ़ता है देखो अब परवान ? *[कौनसी राजनितिक पार्टी]
'फेसबुक' पर दिखे, मिले जब तो,
ईद से क़ब्ल ही हुए कुर्बान !
है 'दशहरा', दिवाली की आमद,
तान दो 'रावणों' पे फिर से बाण.
पहले 'लिखने' से भी थे डरते लोग,
अब तो 'छपना' भी हो गया आसान।
बात पढ़ने-पढ़ाने की मत कर,
Paste कर काट के कोई अन्जान.
'हाश्मी', बस भी अब करो यारां,
पढ़ने वालो को मत करो हल्क़ान।
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- mansoor ali hashmi