जो 'मीठा' तो गप-गप, है 'थूं-थूं जो 'खट्टा !
कोई कहता कच्चा, कोई कहता पक्का .
है 'वाचाल' कोई तो 'खामोश' बच्चा !
है 'उद्दंडता' कि जमा खूँ का 'थक्का' ?
बने आज का दिन* पुनर्जन्म जैसा, *[स्वतंत्रता-दिवस वर्षगाँठ]
सलामत रहे , या ख़ुदा, ज़च्चा-बच्चा.
न 'शिक्षा' न 'संस्कार' की है ज़रूरत,
वही जीतता है, जो है हट्टा-कट्टा !
'खनन' पर, 'ज़मीं' पर तो 'दंगो' को लेकर,
'सदन' में तो जारी है बस लट्ठम-लट्ठा !
'फुद्बिल', एफडीआई, 'नारी आरक्षण',
अभी पक रहे है, न रह जाये कच्चा !
लदे तो है 'बेलो'* पे अंगूर ढेरों , *[आगामी चुनाव रूपी]
मिले तो है मीठे, न पाए तो खट्टा .
ये है लोक-तंतर, बुरा न लगाना,
जो कहदे तुम्हे कोई 'उल्लू' का पट्ठा !
--mansoor ali hashmi