अब करे तो क्या?
शब्दों में वायरस है , छुपे अर्थ fog में.
होने लगा शुमार अब लिखना भी रोग में,
किस्मत अब आजमाए चलो अपनी योग में.
हम ढूँढते नहीं इसे अपनों या ग़ैर में,
अब तो सिमट गयी है वफाए भी Dog में.
पहले तलाशे मोक्ष का साधन ही त्याग था,
अब खोजा जा रहा है उसे सिर्फ भोग में.
था सच का बोल बाला तो झूठे थे शर्मसार,
शर्मो हया बची है अब गिनती के लोग में
mansoor ali hashmi