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Monday, August 25, 2014

'कुर्सी' चौसर की गोट होने लगी !





'कुर्सी' चौसर की गोट होने लगी !

जब 'चढ़ावों' की नोंध* होने लगी !         *संज्ञान 
आस्थाओं पे चोट होने लगी 

बढ़ती रहने में हर्ज ही क्या है ?
'पापुलेशन' जो 'वोट' होने लगी !

बात अब 'सौ टके' की कैसे करे ?
जब असल ही में खोट होने लगी !

जिसने कुर्सी से लग्न करवाया 
वो ही महंगाई सौत होने लगी !

जब से 'गंगा नहा लिए' है वो 
आरज़ूओं की मौत होने लगी !

 अपनी 'हूटिंग' से बौखलाए है 
'भीड़' तब्दीले  'वोट' होने लगी 

संहिता थी कभी 'आचारों' की 
'गांधी-तस्वीर' नोट होने लगी ! 

-- mansoor ali hashmi 

Thursday, April 3, 2014

PARLIAMENTRY ELECTION

प्रजातंत्र का ये त्यौहार !

बे ईमानो की जय-जयकार ,
अबकी तो "ख़ुद"  ही सरकार !     

'हाथ' कहीं तो 'कमलाकार',
'झाड़' फूँक भी है दरकार ।          

बांटना हो जिनका आधार 
कर दो उनका बंटाधार।               

कौन करे इनका उपचार,
एक अनार -ओ- सौ बीमार।         

विषय भूगोल हो या तारीख़,
बात करे है 'भेजामार' .               
====================

तिलक, तराज़ू या  तलवार,
किस, किसको मारे जूते चार ?       
'बाबर' की औलादो के भी 
बिसरादे, क्या अत्याचार ?

'स्याही' धोना सीख ले यार,
वोट करेंगे बारंबार,
बात नही कोई चिंता की,
संग है अपने 'शरद पवार'.            

कौन हो अपना तारणहार ?
जीत किसे दे; किसको हार ??
कथनी को करनी में जीता !
सादा जीवन उच्च विचार !!          
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Tuesday, March 25, 2014

मज़हब को राजनीति में उलझा रहे है आज !

मज़हब को राजनीति में उलझा रहे है आज !


'हर', हर तरह के नुस्ख़े वो अज़मा रहे है आज ,
घर घर में उनका ज़िक्र हो वो चाह रहे है आज। 

हर-हर जो हो रही है तो इतरा रहे है आज 
'रथ' पर जो थे 'सवार' वो पछता रहे है आज !

इज़ज़त 'हरण' हुई है बुज़ुर्गो की और  वाँ ,
हर-हर, नमो-नमो भी जपे जा रहे है आज। 

भाषा वही है - बदली परिभाषा आजकल , 
'हर' शिव -या- मोदी ? कौन ये बतला रहे है आज 
 
'हर'* बांटने का काम न कर दे कही ए दोस्त,       *अंक गणित का 'हर'
नक़लो - असल का भेद वो* समझा रहे है आज     *जसवंतसिंघ जी 
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Wednesday, March 19, 2014

मतदान करके देश का 'राजा' तू ही बना !

मतदान करके देश का 'राजा' तू ही बना !

एक 'दाग़दार' ही को चुना अपना रहनुमा,
'बेहतर' क्या इनके पास नही कोई था बचा?

तफ़रीक़ * सोच ही में तो शामिल रही सदा,         *भेदभाव [इंसानों के बीच}
किस सिम्त देखे मुल्क़ का बढ़ता है कारवाँ !

माज़ी को भूल जाने का मौक़ा कहाँ दिया ,
फिर इक सितम ज़रीफ़ को अगुवा बना दिया !
अपने किये पे जो कि पशेमाँ * नही हुवा,                 *शर्मिन्दा 
जो 'राजधर्म' भी नही अपना निभा सका। 

कहते है उसने अपने 'गुरु' को दिया दग़ा ,
कैसे वो अपने देश का कर पायेगा भला ?
अपने वतन का ऐसा ही क्या ताजदार हो !
'कुत्ते का पिल्ला' आदमी को जिसने कह दिया ?











लगता है कि गुरु ने भी अब कस ली है कमर,
सिखलायेंगे सबक़ उसे, खोदी थी जिसने क़ब्र 
अब तो बदल लिया है अखाड़ा चुनाव का, 
'भोपाल' जा रहे है वो तज 'गांधी  का नगर' i  .  

इस बार ये 'चुनाव नही इम्तेहान है 
तहज़ीब 'गंगा-जमनी' ही भारत की शान है 
'जनमत' इसे खंडित न करे ये ही दुआ है ,
अच्छा जहान से मेरा हिदुस्तान  है। 
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  --mansoor ali hashmi 

Monday, March 10, 2014

दाढ़ी की दाद दीजिये तिनका छुपा लिया!

दाढ़ी की दाद दीजिये तिनका छुपा लिया!






तुमने ये कैसे राज़ से पर्दा उठा दिया 
मोहित जो ख़ुद पे है उसे दर्पण दिखा दिया !

सिखलाये जिस 'गुरु' ने थे आदाबे 'सियासत'
'मंज़िल' क़रीब आई तो "धत्ता बता दिया"
बातें तो दिलफरेब है, अंदाज़ खूब है
दुश्मन को दोस्त दोस्त को दुश्मन बना दिया। 

थकते नही है यार अब कहते नमो-नमो 
बिल्ली ने जिसके भाग्य में छींका गिरा दिया !         

अब रैफरी बने हुए चेनल्स आजकल 
लड़ने से पहले जीत का तमग़ा दिला दिया। 

'आचार संहीता' ने जो लाचार कर दिया  
फिर एक 'इंक़िलाब' का नारा लगा दिया। 

जम्हाई ली थी, तोड़ी थी, आलस अभी-अभी 
किस नामुराद ने उसे फिर से सुला दिया !

रक्खा था दिल के पास ही अक़लो शऊर को,
नादान दिल ने उसको भी मजनूं बना दिया। 

Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.

-- mansoor ali hashmi 

Monday, March 3, 2014

कैसे अपने रहनुमा है !

कैसे ये अपने रहनुमा है !

'ख़ास' बनने को चला था,
'आम' फिर 'बौरा' गया है। 

'आदमी' की तरह ये भी,
मुस्कुराकर छल रहा है। 

फल की आशाएं जगा कर,
फूल क्यों मुरझा गया है !

छाछ को भी फूँकता है,
दूध से जो जल चूका है। 

जल चुकी थी ट्रैन, घर भी,
उठ रहा अबतक धुँआ है। 

'चाय' बेचीं थी कभी, अब 
'दल' से भी दिखता बड़ा है।  

'आज्ञाकारी'* माँ का लेकिन,        *राजकुमार 
'भाषा' किसकी की बोलता है? 

'फेंक' तो सब ही रहे है,
'झेल' वोटर ही रहा है। 

'जीत' के मुद्दे थे जो भी,
हो गए अब 'गुमशुदा'* है।      *मंदिर/महंगाई 
--mansoor ali hashmi 

Thursday, February 27, 2014

कुछ काम कर अक़ल का !







कुछ काम कर अक़ल का !

आ फायदा उठाले, मौसम है 'दल-बदल' का,
'फड़ ले'* तू आज 'थैली', क्या है भरोसा कल का।       *[पकड़ ले ]

'सायकल' हुई है पंक्चर, कम तैल 'लालटेन' में,
अब देखे ज़ोर  चलता, 'पंजे' का या 'कमल' का। 

जब मुफ्त मिल रहा था नाहया-निहलाया सबको,
टोंटी /टोपी बदल गयी अब, क्या है भरोसा नल का। 

बारह महीने अब तो बरसात हो रही है,
फिर किसलिए यहाँ पर होता अभाव जल का ?

'त्रिशंकु' अबकि 'संसद' बनती हुई सी लगती,
आ जाए न ज़माना , फिर से उथल-पुथल का। 

'बच्चे' तो 'पांच' अच्छे, खुशहाल हो के भूखे,
'गिनती' में बढ़ न जाए, कोई अगल-बग़ल का !

सामान कर लिया है, सौ-सौ बरस का हमने, 
ये जानते हुए भी , कुछ न भरोसा पल का। 
--mansoor ali hashmi 

Friday, February 14, 2014

'गर्दभ पुराण'








 'गर्दभ पुराण' :

[दुनिया भर में सर्वाधिक प्रचलित खिताब है गधा। इतना ज्यादा कि चौपाये गधे अल्पमत में हैं और दोपाये गधे बहुमत में।

बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है।  - अजित वडनेरकर Facebook  पर]


#  वेलेंटाईन की शाम, और आयी 'गधो'* की याद !    [*प्यार के दुश्मन]
    प्रोपोज़ करने वाला था 'सुर' दे गया जवाब ,
    'मन' को मसोस रह गया सुन 'ढेंचू' की आहट 
    ए  दुश्मनाने प्यार हो ख़ाना तेरा ख़राब। 

-'मन' 'सुर'  हाश्मी 

एक दूसरे संदर्भ में:  :

#  चुन कर तो हम ने भेजे थे अच्छे भले से लोग,  
    'काम' उनके देख लगते है वो तो 'गधे' से लोग !
    मशहूर थी  'दुलत्ती' अब अज़माते हाथ है,
    क्यों हम ने भेज डाले * है  ? ये बे-पढ़े से लोग।        [*संसद में]   

--mansoor ali hashmi 

Friday, February 24, 2012

चौपाई[याँ] (यानी चार पैरों वाली कुर्सी)

चौपाई[याँ]  (यानी चार पैरों वाली कुर्सी)



और 'येद्दू' को न अब  तड़पाईए,
खोयी गद्दी फिर उसे दिलवाईये.
आप बिन 'नाटक' अधूरा सा लगे,
आईये, आ जाईये, आ जाईये.


'पोर्टफोलियो' कुछ अभी खाली पड़े,
पाव दर्ज़न मंत्री भी हट चुके !
{देखने के 'जुर्म' से है 'पट' चुके}
'खाने-पीने' से सभी है डर रहे,
आईये, ख़ा जाईये, ख़ा जाईये !

टीम 'आधी' आप ही के  साथ है,
दिख रहा 'पंजे' नुमा इक 'हाथ' है,
'shake' करले 'hand' मत शर्माईये,
भाग्य अपने फिर से अब अज़माईए, 

आप 'Ready' है तो 'रेड्डी' साथ है,
पहल  करना 'राजनैतिक' पाठ है,
जो है सत्ता में उसी के ठाठ है,
आज का 'चाणक्य' बन दिखलाईये !

आईये, आजाईये, आजाईये !
Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. 
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mansoor ali hashmi


Friday, September 23, 2011

Short Cut !

कैसा ये 'काल' है !

जिस 'माल'* ने बनाया हमें 'मालामाल' है,        *पशु-धन 
किस दर्जा आज देखो तो वो पाएमाल है.

आँखे ! कि तेरी झील सी इक नेनीताल है.
गहरी है, कितनी नीली है, कितनी विशाल है.

'रथ' पर, 'ट्रेन' में कोई, कोई हवा में है* ,    *प्रचार के लिए !
है पात-पात कोई,  कोई  डाल-डाल है.

'P C'  भी अब चपेट में वाइरस की, ख़ैर  हो,
'राजा' ये कह रहा है कि सब 'सादे नाल' है. 

'रक्खा' विदेश में है,सुरक्षित हरएक तरह,
'नंबर' जो उसका गुप्त है, वो सादे नाल है. 

वो तो 'अमर' है, साथ में लोगा वड्डे-वड्डे* !   *big B
'चिरकुट' कहे कोई उसे, कोई दलाल है.

'वो' आसमानों पर है ज़मीं की  तलाश में,
हम तो ज़मीन खोद* के होते 'निहाल' है.      *खनन 

--mansoor ali hashmi

Thursday, September 22, 2011

Alas !

बे मेल !






खूँटी' मिल न पायी जब आस्था की 'टोपी' को,
'मुल्ला' की मलामत की, और कौसा 'मोदी' को.

दौर 'अनशनो' का है, त्याग कर ये रोटी को,
फिक्स कर रहे है सब, अपनी-अपनी गोटी को.

'शास्त्र' से न था रिश्ता, 'शस्त्र' लाना भूले थे,  
इक ने खींची दाढ़ी तो, दूसरे ने चोटी को.

जोड़े यूं भी बनते है, जोड़ जब नहीं मिलती,
मोटा लाये मरियल सी, दुबला पाए मोटी को.

'बड़की'* से ब्याहने जो रथ पे चढ़ने आया था,   
 लौटना पड़ा उसको साथ लेके 'छोटी' को.

* {पी.एम्. की गद्दी}
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mansoor ali hashmi 

Saturday, May 21, 2011

2 G SPECTRUM


2 G स्पेक्ट्रम 


'कनी' - मोझी, मोड़ी भी, मोई कहाए,
'triple'  नाम पाए; 'तिहाड़ी'' को जाए,
बहुत अपने 'पापा' से इनआम पाए,
फिर इक दिन वो सारे के सारे गंवाए, 
थी 'राजा' की सत्ता तो 'बलवा' भी भाए
पुरी संग सब मिलके हलवा भी खाए,
अब आटे में घाटा है क्या दिन ये आए,
जो भरना है पेट अब,तो चक्की चलाए!!!

-Mansoor ali hashmi

Thursday, November 25, 2010

ये क्या कर दिया !

ये क्या कर दिया !
पूंजी के   'विचरण' ने जब 'बाएं' को 'दायाँ' कर दिया,

ख़ुद हथौड़े ने ही, हंसिये  का सफाया कर दिया.     





'दस्तकारी' में कुशल अँगरेज़ ने इस मुल्क को.
एक था सदियों से जो, मैरा-तुम्हारा कर दिया.

रुक गई थी ट्रेन, लो! अब बुझ गयी है लालटेन,
'चारागर'  को किसने ये आखिर बिचारा कर दिया.   
      
'ये-दू', वोह दूँ , सब दूँ  लेकिन इस्तीफा मांगो नही,       
मैं 'विनोबा' आज का,   'भू- दान' सारा कर दिया.

लुट गई इक बार फिर, नगरी ये 'हस्तिनापुरम'*          
अपने ही लोगो ने अबकी काम* सारा कर दिया.      *C.W.G.




शब्द ले "शब्दावली"* से 'हाशमी' ने आज तो, 
लेख अपना, जैसे-तैसे आज  पूरा कर दिया.

*http://shabdavali.blogspot.com

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-- mansoorali hashmi

Wednesday, November 17, 2010

'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'लक्ष्मी' की चाह ने कई 'उल्लू' बना दिये !


'भज्जी'  ने 'kiwi' बोल के भजिये बना दिये,
'अठ-नम्बरी' ने बेट से छक्के छुड़ा दिये. 

'राजा' ने बिना-तार* भी छेड़े करोड़ों राग,    [*wireless]
'अर्थो' की सब व्यवस्था के बाजे बजा दिये.

'आदर्श हो गए है, हमारे flat* अब,   [*ध्वस्त]
'ऊंचाई' पाने के लिए ख़ुद को गिरा दिये.

'दर्शन' को जिसके होते हज़ारो कतारबद्ध!
वाणी के बाण से कई मंदिर* ढहा दिये.  [*अनुशासनिक आदर्श] 

mansoor ali hashmi

Friday, October 29, 2010

किस से 'गिला' करे !

किस से 'गिला'  करे !

उसका 'गीला', 'नी' लगे, 'गंदा' उन्हें !
'अंधी' 'रुत' है, दोस्तों अब क्या करे?
कैसी आज़ादी उन्हें दरकार है,
अपने ही जो देश को रुसवा करे !!

-मंसूर अली हाश्मी 
  


Thursday, April 8, 2010

मुफ्त की सलाह!


मुफ्त  की सलाह!

[शब्दों का सफ़र....की आज [०८.०४.१०.] की पोस्ट 
बंद कमरों के मशवरो के स्वरूप,
फैसले जो हुए अमल करना,
शहद पर हक है हुक्मरानों का,
जो बचे उसपे ही बसर करना.

हाँ! सलाह तुमसे भी वो लेंगे ज़रूर,
वैसे तो उनके पास भी है 'थरूर',
दिल के खानों में रखना पौशीदा,
लब पे लाये!  नहीं है ख़ैर  हुजुर.

एम्बेसेडर, मुशीर बनते है,
बस वही, हाँ जो हाँ में भरते है,
उनकी तस्वीर भी पसंद नही,
जो किसी 'दूसरे' से जुड़ते है. 

-मंसूर अली हाशमी 

Monday, November 30, 2009

लिब्राहन आयोग / Liberhan Commission

लिब्राहन आयोग 


एक 'रपट'  फिर लीक हो गयी,
हार किसी की जीत हो गयी.


देर से आई, ख़ैर न लायी,
कैसे भी कम्प्लीट हो गयी.


तोड़-फोड़ तो एक ही दिन की,
'सत्रह साली'  ईंट*  हो गयी.


संसद पर जो भी गुज़री हो,
'अमर-वालिया'  meet  हो गयी.


हो न सका 'कल्याण' जो खुद का,
मंदिर से फिर  प्रीत हो गयी.


बड़े राम से , निकले नेता,
बिगड़ी बाज़ी ठीक हो गयी.

*ईंट= निर्माण के लिए बनायी गयी.

-मंसूर अली हाशमी

Thursday, November 12, 2009

माय फूट!/ My Foot

माय फूट!

वो नहीं बोलता झूट,
''अमची'' न बोला तो 'हूट'
माय फूट!


'आज़मी' को डाला कूट ,
किसको भली लगी करतूत?
माय फूट.


अस्मिता में डाली फूट,
कैसी मानुस में अब टूट,
माय फ़ुट.


चाहें देश ये जाए टूट,
दल को करना है मजबूत,
माय फूट.


नही पूरा हुआ [कर] नाटक,
केवल बदल गया है रूट,
माय फूट.


वे नहीं बोलते झूट, 
खद्दर का पहने है सूट,
माय फूट!


उसने लिए करोड़ो लूट,
जिसको मिली ज़रा भी छूट,
माय फूट.

-मंसूर अली हाशमी

Tuesday, November 3, 2009

Karnataka/scam/terror


कर- नाटक !


# अब दल का खुला है फाटक,
  ''कर'' लो जो भी हो ''नाटक''.
  'येदू' जो  कभी  ''रब्बा'' थे,
  अब क्यों लगते है  जातक.

# धन ढूंढ़ता राजा को पहले,
  अब ''राजा'' को धन की चाहत,
  पैकेज बने तो सत्ता में, 
  बैठो को मिलती है राहत.

# आतंक तलवार दो-धारी,
   दुश्मन से कैसी यारी,
  अब कर ली है तैयारी,
  माता हम तुझ पे वारी 

-मंसूर अली हाशमी 

Friday, April 10, 2009

S H O E S




उड़ती हुई गाली 






निशाना चूक कर भी जीत जाना,
अजब अंदाज़ है तेरा ज़माना.

चलन वैसे रहा है ये पुराना,
मसल तब ही बनी है ''जूते खाना''.

बढ़ी है बात अब शब्दों से आगे,
अरे Sir ! अपने सिर को तो बचाना.

कभी थे ताज ज़ीनत म्यूजियम की,
अभी जूतों का भी देखा सजाना. 

कभी इज्ज़त से पहनाते थे जिसको#,
बढ़ी रफ़्तार तो सीखा उडाना.

शरम से पानी हो जाते थे पहले,
अभी तो हमने देखा मुस्कुराना.

# जूतों का हार बना कर

-मंसूर अली हाशमी