बनना
बस्ती जब बाज़ार बन गयी,
हस्ती भी व्यापार बन गयी।
भिन्न,विभिन्न मतो से चुन कर,
त्रिशन्कु सरकार बन गयी।
लाख टके की बात सुनी थी,
सुन्दर नैनो कार बन गयी।
आतंक का हथयार बन गयी।
लोक-तन्त्र की जय-जय,जय हो,
राजनीति घर-बार बन गयी।
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-मन्सूर अली हाशमी