खींचो किसी की टांग तो बनती है कविता !
अजित वडनेरकर जी, कवियों से पंगा लेने 'ब्लेक होल' में जाने की हिम्मत नहीं, 'कविता' ही की कुछ ख़बर इस तरह ली है.....आपकी 'अकविता' [Face Book पर ]
से प्रेरणा पाकर...
शब्दों से छेड़-छाड़ से 'बनती' है कविता,
अर्थो से भी खाली हो तो 'बिकती' है कविता.
बे-दाम ब्लागों पे अब छपती है कविता,
मंचो पे पढ़ी जाए तो 'दिखती' है कविता.
'काका'* कभी पढ़ते थे तो 'हंसती' थी कविता, *हाथरसी
जोकर भी सुनाये है, तो 'रोती' है कविता,
'हूटिंग' अगर हो जाये , बिलखती है कविता,
बिजली जो हुई गुल तो सिसकती है कविता.
नखराली 'शायरा' कभी पढ़ती है कविता,
गिरती है कविता, कभी पड़ती है कविता.
'बलात' इस का 'कार' भी होते हुए देखा,
लिक्खे कोई, नाम 'उनके' ही, छपती है कविता.
सब की ही बनी जाती है भाभी, ये 'सविता'
शादी से भी पहले अभी जनती है 'कविता'.
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mansoor ali hashmi