उसको मैं कैसा समझता था, वो कैसा निकला !
जो कलंदर नज़र आता था, सिकंदर निकला.
शांत एसा था कि तल्लीन 'ऋषि' हो जैसे,
और बिफरा तो 'सुनामी' सा समंदर निकला.
यूं 'उछल-कूद' की आदत है सदा से उसमे,
उसके पुरखे को जो खोजा तो वो बन्दर निकला.
'साब' बाहर है, मुलाकात नहीं हो सकती,
'Raid' आई तो बिचारा वही घर पर निकला.
उम्र भर जिसको संभाले रखा हीरे की तरह,
वक्ते मुश्किल जो निकाला तो वो पत्थर निकला.
हम 'अनुबोम्ब' तो रखते ही है, फौड़ेंगे उसे,
'भिनभिनाता हुआ, इक पास से 'मच्छर' निकला.
mansoor ali hashmi