बे मेल !
खूँटी' मिल न पायी जब आस्था की 'टोपी' को,
'मुल्ला' की मलामत की, और कौसा 'मोदी' को.
'बड़की'* से ब्याहने जो रथ पे चढ़ने आया था,
दौर 'अनशनो' का है, त्याग कर ये रोटी को,
फिक्स कर रहे है सब, अपनी-अपनी गोटी को.
'शास्त्र' से न था रिश्ता, 'शस्त्र' लाना भूले थे,
इक ने खींची दाढ़ी तो, दूसरे ने चोटी को.
जोड़े यूं भी बनते है, जोड़ जब नहीं मिलती,
मोटा लाये मरियल सी, दुबला पाए मोटी को.
लौटना पड़ा उसको साथ लेके 'छोटी' को.
* {पी.एम्. की गद्दी}
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mansoor ali hashmi