अभी सर पे हमारे आसमाँ है
फ़िकर में दोस्त तू क्यों मुब्तला है
कि अपना घर कोई थोड़े जला है !
वो हरकत में है जो लेटा हुआ है.
अनार इक बीच में रक्खा हुआ है
मरीज़ो में तो झगड़ा हो रहा है।
लुटा के 'घोड़ा' 'बाबा' सो रहे है, *[बाबा भारती]
'खडग सिंह' क्यों खड़ा यां रो रहा है ?
तलब काहे को अब है 'काले धन' की ?
ज़मीर अपना 'स्याह' तो हो रहा है !
कईं 'रामो' को हम 'पाले' हुए है *[असंत रामपाल]
सिया का राम क्या गुम हो गया है?
बदलते 'मूल्य' का है ये ज़माना
वही अच्छा है जो सबसे बुरा है।
हरा था, लाल था, भगवा अभी तक
कलर 'खाकी' भी अब तो चढ़ गया है।
वो आएंगे, अभी आते ही होंगे
ओ अच्छे दिन कहाँ है तू कहाँ है ?
-- शेख मंसूर अली हाश्मी