बात अच्छे दिनों की क्यों न करे ?
दिलरुबा, कमसिनों की क्यों न करे !
'जादू'* उसका तो चल नहीं पाया *[महंगाई पर]
बात 'दीपक', 'जिनों' की क्यों न करे ?
वो है 'उम्मीद' से कि आएंगे
सब्र हम कुछ 'दिनों' का क्यों न करे?
'उसका' सीना बड़ा 'कुशादा'* है *[चौड़ा]
बात फिर 'रॉबिनो' सी क्यों न करे ?
'कुफ्र'* की आँधियाँ है ज़ोरों पर *[नास्तिकता]
बात फिर मुअमिनों की क्यों न करे ?
अब भी 'सीता' ही शक के घेरे में
ज़िक्र फिर 'धोबिनों' का क्यों न करे ?
--मंसूर अली हाश्मी