Sunday, April 22, 2012

आज का भजन


 आज का भजन 

[भजन का 'अर्थ' समझने के लिए ...

‘कुछ’ तो हो सकता है निर्मल नरुला का

एकोऽहम्  

की 'कुंजी' अवश्य खरीदे ! ]

अब और तू 'निर्मल' को 'न'-'रुला',
तुझ पर भी होवेगी 'कृपा', 
जो बीत गया सो बीत गया,
मत शोर मचा, मत शोर मचा.


बीता कल तो था 'हज़ारी' का, 
'बाबा' है ये तो 'करोड़ी' का,
एक बेग 'ब्लेक' ज़रा ले आ,
जितना चाहे उसमे भरजा.


कर चुके 'सरस्वती' की वंदना,
'लक्ष्मी' संग 'उल्लू' पर चढ़ जा.
इस 'दूध' में 'फेन' नहीं है ज़रा,
आजा, मुख पर 'मक्खन' मलजा !

'कागज़' पत्तर तू फाड़ दे सब,
'इन्साफ' में लगती देर बहुत,
अब क्या 'उपमा' दे, कबीर भगत ?
'रूई' भी हुई 'अग्नि-रोधक' !


http://aatm-manthan.com

3 comments:

विष्णु बैरागी said...

आपने तो मेरी, मेरे बलॅग की और मेरी इस पोस्‍ट की इज्‍जत बढा दी हाशमीजी। मैं आपका अहसानमन्‍द हूँ। जी भर आया मेरा।

दिनेशराय द्विवेदी said...

हाशमी जी,
बहुत बहुत मुबारक हो इस रचना और अन्य सामयिक रचनाओं के लिए।

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! वाह!

'न'-'रुला'