[शब्दों का सफर अरे...अबे...क्यों बे......... प्रेरणामयी पोस्ट अजित वडनेरकर द्वारा ………… ]
अरे ! अरे !
# क्या बात कह रहे हो मियाँ ? तुम अरे ! अरे !
याँ लग गई है वाट कबहु से खड़े-खड़े।
सौ-सौ निबट लिए है पे नम्बर नहीं लगा,
तुम हो कि कह रहे हो, "मियाँ हट परे-परे",
# पहले गया निकट, वो पलट आया उलटे पाँव
लिक्खा हुआ ट्रैन पे देखा प. रे. , प. रे.
# हम 'आर्यजन' है बात न करते 'अरे', 'वरे'
शब्दों के धन में अपने तो मोती, रतन जड़े।
# 'शब्दों' का ये 'सफ़र' हुआ जारी है फिर से दोस्त,
'चल बे', 'अजित' के साथ फिर हो ले, हरे-भरे।
-Mansoor ali hashmi