ठहर जा ! सोच ले, अंजाम इसका क्या होगा?
ग्यान इसका मेरे दोस्त तुझको कब होगा.
जो तुझसे ज़िन्दा रहे क्या वो तेरा रब होगा?
सन्देश वक़्त से पहले ही तूने आम किया,
फसाद होगा तो वो तेरे ही सबब होगा.
जो फैसला तेरे हक में हुआ तो ठीक मगर,
तेरा अमल तो तेरी सोच के मुजब होगा.
तू शक की नींव पे तअमीर कर भी लेगा अगर,
जवाब इसका भी तुझसे कभी तलब होगा.
हरएक शय से ज़्यादा वतन अज़ीज़ अगर,
जो क़र्ज़ जान पे तेरे अदा वो कब होगा.
-- mansoorali हाश्मी