समझौता
वातावरण में शोर न पैदा करेंगे हम,
दिल के दीये जला के उजाला करेंगे हम.
फोड़ा पटाखा,फहरा पताका है चाँद पर,
दीपावली वही पे मनाया करेंगे हम.
कुर्बानियां तो ईद की करते है बार-बार,
खुद को भी अपने देश पे कुर्बां करेंगे हम.
पटरी से रेल उतर गई, इंजन बदल गया,
भैय्या! कुछ-एक बरस तो अब चारा चरेंगे हम.
'छठ' हम मना न पायेंगे दरया* में अबकी बार,
चौपाटी पर दुकाँ तो लगाया करेंगे हम.
९ के मिलन के साल में नैनो नही मिली,
नयनो में उनको अपनी बिठाया करेंगे हम.
*समुन्द्र
-मंसूर अली हाशमी