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Friday, September 11, 2009

Observation.....

देखा है...


उनका चेहरा उदास देखा है,
ज़ख्म इक दिल के पास देखा है।


बात दिल की जुबां पे ले आए,
उनको यूँ बेनकाब देखा है।


हो गुलिस्ताँ की खैर शाखों पर,
उल्लूओं का निवास देखा है।


सीरियल सी है जिंदगी की किताब,
बनना बहुओं का सास देखा है।


क्या जला है पता नही चलता,
बस धुआँ आस-पास देखा है।


जिसको पाने में खो दिया ख़ुद को,
उसको अब ना-शनास * देखा है।


उनके रुख पर हिजाब * की मानिंद,
हमने लज्जा का वास देखा है .

देखते रह गए सभी उसको,
घास को अब जो बांस देखा है.


*अपरिचित , पर्दा


-मंसूर अली हाशमी