गुदगुदी - गुदगुदी - गुदगुदी!
'राय' उनको भी अब मिल गयी
बाँटते रहते थे जो कभी.
पोलें खोळी थी जिसने बहुत
'पोल' उसकी भी लो अब खुली.
फूल * कांटा बने न कहीं (*कमल का)
ऊंगलीयाँ * खुद की दुशमन बनी. (*मोदी की)
'बाबा' - "हनी" पे अब "मौन" है!
'योग' 'संयोग' मे है ठनी.
है दिवस आज मज़दूर का
छुट्टी पहचान इसकी बनी!
'रागे पण्डित' पे खामौश शैर* (*कशमीर के)
खुद पे आयी तो चुप्पी लगी!
'राखी- प्रियंका - उमा' भी है,
इनपे भी कुछ लिखो 'हाशमी'.
-मंसूर अली हाशमी