'लव-जिहादी' में हम भी शामिल है !
अब ग़ज़ल की ज़मीं मुनासिब है।
फ़ूल भी फेसबुक पे भेजे है ,
कर दूँ 'like' ये मुझ पे वाजिब है।
फ़ोन 'स्मार्ट' भी लिया हमने
'व्हाट्स-एपी' भी अब तो लाज़िम है !
बात मिलने की ! बस नही करते
'On line' ही 'सब कुछ' हासिल है !
रोज़ तस्वीर वो बदलते है
हर अदा उसकी यारों ज़ालिम है।
शेर लिखने लगी है वो भी अब
मानती हमको 'चाचा ग़ालिब' है !!!
--मंसूर अली हाशमी