मतदान करके देश का 'राजा' तू ही बना !
'बेहतर' क्या इनके पास नही कोई था बचा?
लगता है कि गुरु ने भी अब कस ली है कमर,
तफ़रीक़ * सोच ही में तो शामिल रही सदा, *भेदभाव [इंसानों के बीच}
किस सिम्त देखे मुल्क़ का बढ़ता है कारवाँ !
माज़ी को भूल जाने का मौक़ा कहाँ दिया ,
फिर इक सितम ज़रीफ़ को अगुवा बना दिया !
अपने किये पे जो कि पशेमाँ * नही हुवा, *शर्मिन्दा
जो 'राजधर्म' भी नही अपना निभा सका।
कहते है उसने अपने 'गुरु' को दिया दग़ा ,
कैसे वो अपने देश का कर पायेगा भला ?
अपने वतन का ऐसा ही क्या ताजदार हो !
'कुत्ते का पिल्ला' आदमी को जिसने कह दिया ?
लगता है कि गुरु ने भी अब कस ली है कमर,
सिखलायेंगे सबक़ उसे, खोदी थी जिसने क़ब्र
अब तो बदल लिया है अखाड़ा चुनाव का,
'भोपाल' जा रहे है वो तज 'गांधी का नगर' i .
इस बार ये 'चुनाव नही इम्तेहान है
तहज़ीब 'गंगा-जमनी' ही भारत की शान है
'जनमत' इसे खंडित न करे ये ही दुआ है ,
अच्छा जहान से मेरा हिदुस्तान है।
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--mansoor ali hashmi