Tuesday, March 19, 2013

ग़ज़ल


          ग़ज़ल 

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[सुबीर संवाद सेवा पर  : "ये क़ैदे बामशक़्क़त जो तूने की अता है"   

तरही मिसरे  पर प्रकाशित ग़ज़ल ...........पुनर्प्रस्तुति ]

हरदम कचोटती जो वो  अंतरात्मा है
काजल की कोठरी में जलता हुआ दिया है

"ये क़ैदे बामशक़्क़त जो तूने की अता है"      
कर भी दे माफ अब तो ये मेरी इल्तिजा है

दरया में है सुनामी , धरती पे ज़लज़ला है
ए गर्दिशे ज़माना दामन में तेरे क्या है?

यारब मिरे वतन को आबादों शाद रखना
दिल में भी और लब पर मेरे यही दुआ है

फैशन, हवस परस्ती, अख्लाक़े बद , ये मस्ती
जब जब भटक गए हम तब तब मिली सजा है

जम्हूरियत है फिर भी 'राजा' तलाशते है !
अपनी सहूलियत से कानून बन रहा है

क्या बात ! पाप अपने धुलते नही हमारे ,
गंगा नहा लिए है, ज़मज़म भी पी लिया है

मज़हब कहाँ सिखाता आपस में बैर रखना ?
है वो भी तो अधर्मी दिल जो दुखा रहा है

'चार लाईना' :    [ Puzzle/पज़ल !] 

"जुल्फों के पेंचो ख़म में दिल ये उलझ गया है
दीवाना मुझको करती तेरी हर एक अदा है 
पाबंदियाँ है आयद रंगे तगज्ज़ुली पर 
कैसे बयाँ करूँ मैं , तू क्या नही है क्या है।"

-- mansoor ali hashmi 

Thursday, March 7, 2013

उलट फेर


 उलट फेर 

'तारक' ने 'उल्टा चश्मा' पहने ही जब पढ़ा है,
अबकि 'बजट' ने फिर से चकमा बड़ा दिया है. 

नाख़ुश मुखालिफीं है, ख़ुश है 'बिहार' वाले,
'मन रोग* कुछ बढ़ा तो घाटा ज़रा घटा है.       *[मनरेगा]

अब राजनीति भारी अर्थो के शास्त्र पर है,
बटती है रेवड़ी वाँ ,जिस जिस से हित जुड़ा है.

नदियाँ है प्रदूषित और पर्यावरण भी दूषित ,
लेकिन 'हिमाला' अपना बन प्रहरी खड़ा है. 

जंगल को जाते थे हम पहले सुबह सवेरे,
हर 'बैत' ही से मुल्हक़ अब तो कईं 'ख़ला' है .

शू इसका बे तला है ये कोई दिल जला है,
माशूक की गली में अब सर के बल चला है. 

बेजा खुशामदों से घबरा गया है अब दिल,
ज़र से अनानियत का सौदा पड़ा गिरां है. 

अब पड़ रहा व्यक्ति भारी वतन पे, दल पे,  
लायक उसी को माना जो जंग जीतता है . 

झूठों की ताजपोशी और तख़्त भी मिला है,
'मन्सूर' तो सदा से तख्ते पे ही चढ़ा है.

-- mansoor ali hashmi 

Thursday, February 14, 2013

Velentine Day पर 13 का [2013] असर !


Well, Next Time; someday! 

गया था साथ लिए '
 वेलेन्टाईन डे' पे उसे,

'अगर-मगर' ही में दिन 'प्यार' का गुज़ार दिया,
'परन्तु-किन्तु' का मौक़ा भी न मिला मुझको,
बुखार इश्क़ का 'पोलिस' ने आ, उतार दिया।

मैं, अबकि उससे मिलूंगा 'शबे-बरात' ही को,
समाज वालों ने थोड़ा जो वक़्त उधार दिया !
http://aatm-manthan.com   

Thursday, December 13, 2012

Thursday, October 4, 2012

ग़ैरतमंद !


ग़ैरतमंद  !


मेने कहा करते हो क्या ?
उसने कहा ''हलक़तगिरी''

करदो शुरू गांधीगिरी,
"मिलता नहीं ''सर्किट कोई !"

करते हो 'मत' का 'दान' भी ?
उसने कहा "फुर्सत नहीं"

करदो शुरू तुम भी 'खनन'
"उसमे भी अब बरकत नहीं"

बेशर्म हो!, कूदो, मरो!!
"ऊंचा कोई पर्वत  नही!"

क्रिकेट में है फायदा !
"चारो तरफ CCTV !"

मंगल पे जाना चाहोगे  ?
"गद्दों की याँ पर क्या कमी !"

लड़ते इलेक्शन क्यों नहीं?
"बोगस कहाँ वोटिंग रही?"

चौराहे पर हो क्यों डटे?
"मिलती नहीं पतली गली"

सब कुछ ख़तम क्या हो गया ?
"बस शेष है ब्लागिरी*           *Blogging  ब्लागिरी  
करता हूँ वो ही रात-दिन,
देते कमेन्ट है 'हाशमी' "


-मन्सूर अली हाशमी 

Wednesday, August 1, 2012

Tuesday, July 31, 2012

ऐसा बोलेंगा तो !

ऐसा बोलेंगा  तो !

'कांसो'* पे भी संतोष जो करले; हमी तो है,           *[कांस्य पदक]
'सोने' से अपने 'ख़्वाब'  को भरले; हमी तो है.

'मनरेगा'  से भी पेट जो भर ले हमी तो है,    [म. गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना] 
भेंसो के चारे को भी जो चर ले हमी तो है.

रिश्वत से काम लेने की आदत सी पड़ गयी,
कागज़ की  नाव पर भी जो तर ले हमी तो है.

"पेशाब कर रहा है गधा इक खड़ा हुआ",
दीवारों पे लिखा  हुआ पढ़ ले हमी तो है !

'बोफोर्स' हो , 'खनन' कि वो 2G ही क्यों न  हो,
'आदर्श' हरइक घपले को कर ले  हमी तो है.

--mansoor ali hashmi 

Friday, July 27, 2012

वानप्रस्थ आश्रम !


वानप्रस्थ आश्रम !

'एन. डी.' मोहतरम (!),
दुष्करम(!) - सुफलम(?)

शुक्रवारी शुभम,
पुत्र-रत्न, प्राप्तम.

'डी.एन.ए.' बेरहम ,
तौड़ डाले भरम.

है विजित 'शेखरम',
बाप है बेशरम.

रास्ता इक बचा,
वानप्रस्थ आश्रम!






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-Mansoor ali Hashmi

Saturday, July 14, 2012

मान सरोवर [Mansoor's OVER !]

मानसर = मान सरोवर  [ मनसूर ]

[लिक्खे है ये 'वडनेरकर', शब्दों का कर लीजे सफ़र......‘मानसर’ की खोज में..










'तिब्बत' में है , 'जम्मू' में भी प्रसिद्द झीले 'मानसर',
साझी विरासत देखिये, आधी इधर-आधी उधर.

गिरता हुआ स्तर नज़र, आया है शिष्टाचार में,
'विद्यार्थी' शिक्षक से अब कहता है, मेरी 'मान Sir'.

'सागर' भी कहते 'झील' को, कोई 'नहर' तो 'मानसर',
'बहना' ही है इसका चरित्र, सर-सर-सरर, सर-सर-सरर. 

'मानस' 'सरोवर' से मिला, ज्ञानी बना, जीवन सफल, 
दुःख सह के जो 'तीरथ' गया, है कामयाब उसका सफ़र.

'मन्सूर' का भी लक्ष्य है, जीवन 'सरोवर' सा रहे,
ठहराव न आये कभी, कितनी भी मुशकिल हो डगर.


[मिलता उधार है यहाँ, शर्ते बड़ी आसानतर,
ले-ले क्रेडिट कार्ड और, तू एश से करना बसर.]
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mansoor ali hashmi 

Tuesday, July 10, 2012

तब और अब

"मेरे दफ्तर में इक लड़की है , नाम है राधिका" ...पर........."पेरोडी"
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तब और अब 











मेरे घर में एक पत्नी है, नाम है 'मलिका'
छः 'भय्यो' की 'बहना' है, वाह भई, वाह भई, वाह !
गोरी है, चिट्टी है, वाह भई, वाह भई, वाह.

सबसे पहले मिली जहां, 'हाजी-माँ' का घर था,
इंटरव्यू के लिए गया, लेकिन मन में  डर था,
छः 'सालों' की फ़ौज खड़ी थी, वाह भई, वाह भई, वाह!

चाय लिए जब आई पहने 'हरा दुपट्टा'; व़ो ,
हाथों में कम्पन थी उसके, मन में था खटका,
मार के लाई थी 'बालाई'* वाह भई, वाह भई वाह !

*बालाई= मलाई    






चाय बनाना अबतो, ख़ुद को ही पड़ती  है,
बालाई नदारद , चीनी कम डलती है,
'कप' भी अपना ख़ुद धोते है, वाह भई, वाह भई, वाह ! 
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-- mansoor ali hashmi