ग़ज़ल
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[सुबीर संवाद सेवा पर : "ये क़ैदे बामशक़्क़त जो तूने की अता है"
तरही मिसरे पर प्रकाशित ग़ज़ल ...........पुनर्प्रस्तुति ]
हरदम कचोटती जो वो अंतरात्मा है
काजल की कोठरी में जलता हुआ दिया है
"ये क़ैदे बामशक़्क़त जो तूने की अता है"
कर भी दे माफ अब तो ये मेरी इल्तिजा है
कर भी दे माफ अब तो ये मेरी इल्तिजा है
दरया में है सुनामी , धरती पे ज़लज़ला है
ए गर्दिशे ज़माना दामन में तेरे क्या है?
ए गर्दिशे ज़माना दामन में तेरे क्या है?
यारब मिरे वतन को आबादों शाद रखना
दिल में भी और लब पर मेरे यही दुआ है
दिल में भी और लब पर मेरे यही दुआ है
फैशन, हवस परस्ती, अख्लाक़े बद , ये मस्ती
जब जब भटक गए हम तब तब मिली सजा है
जब जब भटक गए हम तब तब मिली सजा है
जम्हूरियत है फिर भी 'राजा' तलाशते है !
अपनी सहूलियत से कानून बन रहा है
अपनी सहूलियत से कानून बन रहा है
क्या बात ! पाप अपने धुलते नही हमारे ,
गंगा नहा लिए है, ज़मज़म भी पी लिया है
गंगा नहा लिए है, ज़मज़म भी पी लिया है
मज़हब कहाँ सिखाता आपस में बैर रखना ?
है वो भी तो अधर्मी दिल जो दुखा रहा है
है वो भी तो अधर्मी दिल जो दुखा रहा है
'चार लाईना' : [ Puzzle/पज़ल !]
"जुल्फों के पेंचो ख़म में दिल ये उलझ गया है
दीवाना मुझको करती तेरी हर एक अदा है
पाबंदियाँ है आयद रंगे तगज्ज़ुली पर
कैसे बयाँ करूँ मैं , तू क्या नही है क्या है।"