Thursday, March 7, 2013

उलट फेर


 उलट फेर 

'तारक' ने 'उल्टा चश्मा' पहने ही जब पढ़ा है,
अबकि 'बजट' ने फिर से चकमा बड़ा दिया है. 

नाख़ुश मुखालिफीं है, ख़ुश है 'बिहार' वाले,
'मन रोग* कुछ बढ़ा तो घाटा ज़रा घटा है.       *[मनरेगा]

अब राजनीति भारी अर्थो के शास्त्र पर है,
बटती है रेवड़ी वाँ ,जिस जिस से हित जुड़ा है.

नदियाँ है प्रदूषित और पर्यावरण भी दूषित ,
लेकिन 'हिमाला' अपना बन प्रहरी खड़ा है. 

जंगल को जाते थे हम पहले सुबह सवेरे,
हर 'बैत' ही से मुल्हक़ अब तो कईं 'ख़ला' है .

शू इसका बे तला है ये कोई दिल जला है,
माशूक की गली में अब सर के बल चला है. 

बेजा खुशामदों से घबरा गया है अब दिल,
ज़र से अनानियत का सौदा पड़ा गिरां है. 

अब पड़ रहा व्यक्ति भारी वतन पे, दल पे,  
लायक उसी को माना जो जंग जीतता है . 

झूठों की ताजपोशी और तख़्त भी मिला है,
'मन्सूर' तो सदा से तख्ते पे ही चढ़ा है.

-- mansoor ali hashmi 

2 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सही कहा है आपने, आज हालात तो एेसे ही हैं

विष्णु बैरागी said...

गजल के दो शेर तो जानलेवा हैं। तबीयत झक्‍क हो गई।

लम्‍बे अरसे बाद आपका ब्‍लॉग ई-मेल से मिल पाया। जितना आनन्‍द आपकी गजल से आया, उतना ही आनन्‍द, ब्‍लॉग ई-मेल से मिलने पर आया।

भगवान करे, आगे भी मिलता रहे।