Thursday, September 29, 2011

Blogging Nuisance !


हंगामा कैसे बरपा करे !

लिखता मैं इसलिए हूँ कि कोई पढ़ा करे,
पढ़ता मैं इसलिए हूँ कि फिर और क्या करे!

Stamps जमा करता था,अब 'टिप्णियो' को मैं,
हो आपको भी शौक़ तो मुझको दिया करे !

उपदेश देने बैठे तो सूखे का हो शिकार,
'छीले' कोई किसी को तो दरिया बहा करे.

आघात, भावनाओं पे कोमल किया करो,
तोड़ो जो छत्ता ; डंक, मधु भी मिला करे.


लिखना जो भूल जाओ तो , गाली तो याद है,
इक देके उसके बदले में दस-दस लिया करे !




Note: {Pictures have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
mansoor ali hashmi 

6 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

चचा आप कमाल करते हैं, इस तरह लिखने का लाइसेंस कहाँ से मिला मुझे भी बताएं.
:) :) :)

Mansoor ali Hashmi said...

@ सुलभ जायसवाल,

छत्ता शहद का तोड़ा था, उससे से लगे जो डंक,
अब शहद की मिठास से सहला रहा हूँ मैं!

ZEAL said...

.

पापा,

इस रचना के एक-एक शब्द दर्शन हैं। हर पंक्ति में आपका ज्ञान और अनुभव छलक रहा है।

....आघात भावनाओं पर कोमल किया करो ....

क्या कहूँ....

मुझे तो बस यही लगता है की सिर्फ प्यार किया करो.....

सादर,
आपकी बिटिया दिव्या

.

उम्मतें said...

@ मंसूर अली हाशमी साहब ,

कीबोर्ड पे कुछ शब्द जो खटका गये हैं आप
उनकी खटक खटक पे बजे जा रहे हैं हम

ये शौके टिप्पणी भी कितना अजीब है
जिसको अमीर समझा,निकला गरीब है

उपदेश दे दिला के मियाँ खुश्क हो लिए
जो दरिया-ए ख्याल थे क़तरे को रो लिए

कोमल सी भावनाओं पे आघात के बदले
इक देदे जो बन्दा वो दस दस लिया करे

Mansoor ali Hashmi said...

@ zeal,
चोट और नफरत से रु-ब-रु होकर ही तो हमें प्यार की कद्र मालूम होती है,उसकी ज़रूरत का एहसास शिद्दत से होता है.आपकी नेक ख्वाशिहात पर आमीन कहूँगा.

@ अली साहब,

राजस्थानी बोली का एक मुहावरा नुमा जुमला याद आ रहा है:

"अय दाबे , वय ज़बके !"

ये एक exclamatory वाक्य है,...यानि "बटन तो इस तरफ दबाओ और लाइट उधर जलती है."

यानि इधर के 'खटको' से उधर आपका शायराना ज़ौक 'vibrate' हो रहा है ! सुभानअल्लाह, keep it up.

m.h.

विष्णु बैरागी said...

इस पोस्‍ट ने दो-दो फायदे दिए। एक तो आपकी शानदार रचना और दूसरा - दानिशमन्‍दों की जुगलबन्‍दी।

गोया, एक पर एक फ्री।