चली-चली, चली-चली, अन्ना जी की गाड़ी चली चली.......
[ प्रियवर राजेंद्र स्वर्णकार जी नहीं चाहते कि ब्लॉग कि गाड़ी रुके , तो एक धक्का और लगा दिया है! वर्ना "आत्ममंथन" से हासिल कुछ नहीं हो रहा है!!!]
इन्द्रप्रस्थ की शान कभी थी, न जाने कौन गली गयी.!!
न 'काले' पर हाथ डाल पाए, न 'उजलो' को हथकड़ी पड़ी !
सधी नही बात अनशनो से , बिचारी जनता छली गयी.
हमीं तो सीना सिपर हुए थे दिलाने आज़ादी इस वतन को,
हमारी ही छातीयों पे देखो कि मूंग अबतक दली गयी.
स्वास्थ्य,रक्षा कि अर्थ अपना , हर इक में ख़ामी भरी हुई,
चरित्र ही को गहन लगा है,ये कैसी कालिख मली गयी.
बना न राशन का कार्ड अपना, न पाया प्रमाण ही जनम का,
शिकारियों के जो मुंह तलक गर न मांस , हड्डी , नली गयी.
जो गाड़ी पटरी पे लाना है तो 'नियम' बने सख्त, ये ज़रूरी,
इक इन्किलाब और लाना होगा जो बात अब भी टली गयी.
mansoor ali hashmi
9 comments:
@ Ravi Ratlami
कौन कहता है कि आत्म मंथन से हासिल कुछ नहीं हो रहा?
आप देखेंगे तो पाएंगे कि पिछले साल आपने कितनी रचनाएँ लिख डालीं? क्या यह आत्म मंथन के बगैर संभव था?
इसे चलने दीजिए. अपने अंतिम सांसों तक.
आप वैसे भी बढ़िया लिखते हैं.
सादर,
रवि
धन्यवाद रविजी उत्साह वर्धन के लिए, आप लोगो का प्यार शायद मुझे यहाँ बनाए रखे. आपका कथन मैरी हतोत्साह में कही गयी बात पर भारी है. आपकी सलाह सर आँखों पर.
m.h.
रवि जी की बातों को ही हमारा कहा माना जाये...
आदरणीय चचाजान मंसूर अली हाश्मी जी
सादर प्रणाम !
अस्सलाम अलैकुम !
बहुत ख़ूब ! लाजवाब !!
न 'काले' पर हाथ डाल पाए, न 'उजलों' को हथकड़ी पड़ी !
सधी नही बात अनशनों से , बिचारी जनता छली गयी
हमारे राजस्थान में कहावत है सायबजी , सूरमा किस्या ? कै कमजोरां रा तो बैरी हां । … मतलब श्रीमानजी , आप किस तरह के वीर हैं ? जवाब मिलता है कि कमजोरों के तो दुश्मन हैं ! हा हाऽऽ…
स्वास्थ्य,रक्षा कि अर्थ अपना , हर इक में ख़ामी भरी हुई,
चरित्र ही को गहन लगा है,ये कैसी कालिख मली गयी
सही है , हर मंत्रालय , हर महकमा ख़ामियों से भरा है …
# … और , आप मुझ जैसे अपने प्रियजनों चाहने वालों के लिए इसी तरह बख़्शिश देते रहें …
आपको मेरे एक गीत का एक चरण समर्पित कर रहा हूं -
युग अभिशप्त ; श्रेष्ठ की कोई परख कसौटी भाव नहीं !
गिरवी जिह्वा नयन हृदय सब ; सत्यनिष्ठ सद्भाव नहीं !
अभय , प्रलोभन-रहित आत्मा मूल्यांकन करती ; इसने
यत्र तत्र सर्वत्र नित्य सुंदर शिव सत्य उकेरा है !
वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
मन हार न जाना रे !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ब्लॉग परिवार , ब्लॉग मंच , हमारी वाणी आदि से अपना ब्लॉग जोड़लें … ( मेरे ब्लॉग पर देखें )
इससे आपकी हर नई पोस्ट की सूचना वहां स्वतः प्रदर्शित होने से अधिक लोगों तक सूचना चली जाएगी …
और नये नये लोग ख़ुद ब ख़ुद जुड़ते जाएंगे ।
हाशमी जी,
आत्ममंथन से बहुत कुछ हासिल हो रहा है। आप को भी और हमें भी। आज आप का ब्लाग पॉप हो गया है। बस कुछ एग्रीगेटरों से तो इसे जोड़ ही दीजिए। फिर देखिए।
हमें तो आप की पोस्ट से ऊर्जा मिलती है।
एक चली नहीं एक चली गई क्या बात है। छाती पर मूंग दलना बहुत पुरानी कहावत का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सुन्दर प्रयोग। नियम बने सख्त सही बात है -
विनय न मानत जलधि जड गये तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब भय बिन होत न प्रीत
ये जो आत्म-मंथन है. बहुतों को दिशा देती है.
याद कीजिये पिछले डेढ़ साल जब से हम भी आपके साथ मंथन कर रहे हैं.
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