मज़हब को राजनीति में उलझा रहे है आज !
'हर', हर तरह के नुस्ख़े वो अज़मा रहे है आज ,
घर घर में उनका ज़िक्र हो वो चाह रहे है आज।
हर-हर जो हो रही है तो इतरा रहे है आज
'रथ' पर जो थे 'सवार' वो पछता रहे है आज !
इज़ज़त 'हरण' हुई है बुज़ुर्गो की और वाँ ,
हर-हर, नमो-नमो भी जपे जा रहे है आज।
भाषा वही है - बदली परिभाषा आजकल ,
'हर' शिव -या- मोदी ? कौन ये बतला रहे है आज
'हर'* बांटने का काम न कर दे कही ए दोस्त, *अंक गणित का 'हर'
नक़लो - असल का भेद वो* समझा रहे है आज *जसवंतसिंघ जी
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