कर- नाटक !
# अब दल का खुला है फाटक,
''कर'' लो जो भी हो ''नाटक''.
'येदू' जो कभी ''रब्बा'' थे,
अब क्यों लगते है जातक.
# धन ढूंढ़ता राजा को पहले,
अब ''राजा'' को धन की चाहत,
पैकेज बने तो सत्ता में,
बैठो को मिलती है राहत.
# आतंक तलवार दो-धारी,
दुश्मन से कैसी यारी,
अब कर ली है तैयारी,
माता हम तुझ पे वारी
-मंसूर अली हाशमी
2 comments:
सटीक दिया भाई जान!! बेहतरीन!!
आतंक तलवार दो-धारी,
दुश्मन से कैसी यारी,
अब कर ली है तैयारी,
माता हम तुझ पे वारी
Bahut khoob Janaab, bahut khoob !!
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