कुछ काम कर अक़ल का !
आ फायदा उठाले, मौसम है 'दल-बदल' का,
'फड़ ले'* तू आज 'थैली', क्या है भरोसा कल का। *[पकड़ ले ]
'सायकल' हुई है पंक्चर, कम तैल 'लालटेन' में,
अब देखे ज़ोर चलता, 'पंजे' का या 'कमल' का।
जब मुफ्त मिल रहा था नाहया-निहलाया सबको,
टोंटी /टोपी बदल गयी अब, क्या है भरोसा नल का।
बारह महीने अब तो बरसात हो रही है,
फिर किसलिए यहाँ पर होता अभाव जल का ?
'त्रिशंकु' अबकि 'संसद' बनती हुई सी लगती,
आ जाए न ज़माना , फिर से उथल-पुथल का।
'बच्चे' तो 'पांच' अच्छे, खुशहाल हो के भूखे,
'गिनती' में बढ़ न जाए, कोई अगल-बग़ल का !
सामान कर लिया है, सौ-सौ बरस का हमने,
ये जानते हुए भी , कुछ न भरोसा पल का।
--mansoor ali hashmi
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