मुफ्त की सलाह!
[शब्दों का सफ़र....की आज [०८.०४.१०.] की पोस्ट
सलाह मश्वरा से सुलह सफाई तक .........से प्रभावित] |
बंद कमरों के मशवरो के स्वरूप,
फैसले जो हुए अमल करना,
शहद पर हक है हुक्मरानों का,
जो बचे उसपे ही बसर करना.
हाँ! सलाह तुमसे भी वो लेंगे ज़रूर,
वैसे तो उनके पास भी है 'थरूर',
दिल के खानों में रखना पौशीदा,
लब पे लाये! नहीं है ख़ैर हुजुर.
एम्बेसेडर, मुशीर बनते है,
बस वही, हाँ जो हाँ में भरते है,
उनकी तस्वीर भी पसंद नही,
जो किसी 'दूसरे' से जुड़ते है.
-मंसूर अली हाशमी
5 comments:
बहुत खूब, हाशमी साहब! बहुत खूब!
बहुत खूब अब समझ में आया कि क्यों लोग बहुत खूब कह कर टरक लेते हैं. :D
कभी-कभी सोचता हूँ कि मैं भिआपकी ही तरह कविता का उत्तर कविता से ही दूं पर समयाभाव के कारण संभव नहीं. फिलहाल बहुत खूब से ही काम चलाइये, अब समझ में आया कि मेडल देना आसान होता है, प्रतिभा का सम्मान आप वैसी ही प्रतिभा दिखा कर नहीं कर सकते. :D
एक बार फिर बहुत खूब लीजिए हमसे और ई गुरू राजीव को सराहिए:)
थरूर को बाकमाल, खूब लपेटा है आपने..
:)
सत्ता का चरित्र देखिये
शासन विचित्र देखिये
चापलूस चित्रकारों की
बड़े बड़े चित्र देखिये
हाशमी साहब, आपका अंदाजे बयां हम से भी कुछ लिखवा देता है.
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