प्राप्ति ....कमेंट्स की!
पीठ खुजाने में दिक्कत है?
आओ! एसा कर लेते है...
मैं खुजलादूं आपकी...
बदले में , मेरी ;
तुम खुजला देना.
एक हाथ से मैंने दी तो,
दूजे से तुम लौटा देना.
कर से, कर [tax] ही की भाँति
अधिक दिया तो वापस [refund] लेना.
-मंसूर अली हाशमी
Saturday, November 7, 2009
Tuesday, November 3, 2009
Karnataka/scam/terror
कर- नाटक !
# अब दल का खुला है फाटक,
''कर'' लो जो भी हो ''नाटक''.
'येदू' जो कभी ''रब्बा'' थे,
अब क्यों लगते है जातक.
# धन ढूंढ़ता राजा को पहले,
अब ''राजा'' को धन की चाहत,
पैकेज बने तो सत्ता में,
बैठो को मिलती है राहत.
# आतंक तलवार दो-धारी,
दुश्मन से कैसी यारी,
अब कर ली है तैयारी,
माता हम तुझ पे वारी
-मंसूर अली हाशमी
litrature, politics, humourous
Dirty Politics
Monday, October 12, 2009
This Year
समझौता
वातावरण में शोर न पैदा करेंगे हम,
दिल के दीये जला के उजाला करेंगे हम.
फोड़ा पटाखा,फहरा पताका है चाँद पर,
दीपावली वही पे मनाया करेंगे हम.
कुर्बानियां तो ईद की करते है बार-बार,
खुद को भी अपने देश पे कुर्बां करेंगे हम.
पटरी से रेल उतर गई, इंजन बदल गया,
भैय्या! कुछ-एक बरस तो अब चारा चरेंगे हम.
'छठ' हम मना न पायेंगे दरया* में अबकी बार,
चौपाटी पर दुकाँ तो लगाया करेंगे हम.
९ के मिलन के साल में नैनो नही मिली,
नयनो में उनको अपनी बिठाया करेंगे हम.
*समुन्द्र
-मंसूर अली हाशमी
वातावरण में शोर न पैदा करेंगे हम,
दिल के दीये जला के उजाला करेंगे हम.
फोड़ा पटाखा,फहरा पताका है चाँद पर,
दीपावली वही पे मनाया करेंगे हम.
कुर्बानियां तो ईद की करते है बार-बार,
खुद को भी अपने देश पे कुर्बां करेंगे हम.
पटरी से रेल उतर गई, इंजन बदल गया,
भैय्या! कुछ-एक बरस तो अब चारा चरेंगे हम.
'छठ' हम मना न पायेंगे दरया* में अबकी बार,
चौपाटी पर दुकाँ तो लगाया करेंगे हम.
९ के मिलन के साल में नैनो नही मिली,
नयनो में उनको अपनी बिठाया करेंगे हम.
*समुन्द्र
-मंसूर अली हाशमी
Sunday, October 11, 2009
This Time
अबकी बार ......
'नो बोल' सा लगे है ये नोबल तो अबकी बार,
मंदी के है शिकार धरोहर* भी अबकी बार.
फिल्मों पे इस तरह पड़ी मंदी की देखो मार,
बनियाँ उतर चुका था गयी शर्ट अबकी बार.
कहते है अब करेंगे नमस्ते वो दूर से,
स्वाईन से बच गए, हुआ डेंगू है अबकी बार.
जिन्ना को याद करके तिजोरी भरी कहीं!
सूखा कहीं रहा कहीं सैलाब अबकी बार.
है राष्ट्र से बड़ा* वो जहाँ पर चुनाव है,
पहले थे चाचा शेर, भतीजा है अबकी बार.
परियां तो खिलखिलाती है, सुनते थे अब तलक,
देखा उड़न-परी* को बिलखते भी अबकी बार.
वो [bo] फोर्स लग गया की वो* बाहर निकल गए,
उनका समाप्त हो गया वनवास अबकी बार.
*वैश्विक संपदा
*महाराष्ट्र
*पी.टी. उषा
*क्वात्रोची
-मंसूर अली हाशमी
'नो बोल' सा लगे है ये नोबल तो अबकी बार,
मंदी के है शिकार धरोहर* भी अबकी बार.
फिल्मों पे इस तरह पड़ी मंदी की देखो मार,
बनियाँ उतर चुका था गयी शर्ट अबकी बार.
कहते है अब करेंगे नमस्ते वो दूर से,
स्वाईन से बच गए, हुआ डेंगू है अबकी बार.
जिन्ना को याद करके तिजोरी भरी कहीं!
सूखा कहीं रहा कहीं सैलाब अबकी बार.
है राष्ट्र से बड़ा* वो जहाँ पर चुनाव है,
पहले थे चाचा शेर, भतीजा है अबकी बार.
परियां तो खिलखिलाती है, सुनते थे अब तलक,
देखा उड़न-परी* को बिलखते भी अबकी बार.
वो [bo] फोर्स लग गया की वो* बाहर निकल गए,
उनका समाप्त हो गया वनवास अबकी बार.
*वैश्विक संपदा
*महाराष्ट्र
*पी.टी. उषा
*क्वात्रोची
-मंसूर अली हाशमी
Saturday, October 10, 2009
Noble Prize
नौ [२००९] में बल से हासिल!
नो[No] में वैसे ही बल नही होता,
शान्ति में; जैसे छल नही होता.
कच्चे नारयल में ये मिलेगा पर,
पक्के पत्थर में जल नहीं होता.
सच्चे साधू में मिल भी जाएगा,
हर कोई बा-अमल नही होता.
बाज़* पाए [ई ] बहुत ही सुन्दर पर,
फूल हर एक कमल नही होता.
उसके घर आज आयेंगे- युवराज!
झोंपड़ा क्यां महल नही होता?
कल न आया न आने वाला है,
आज करलो कि कल नही होता.
उसकी कीमत ज़्यादा होती है,
जिसका कोई भी दल नही होता
ऑनलाईन चलन हुआ जबसे,
मिलना अब आजकल नही होता.
अस्मिता भी चुरायी जाती है,
राज 'मन-से' बदल नही होता.
कोढ़ी-कोढ़ी* में बिक ही जाना है,
टीम-वर्क गर सफल नही होता.
ग़म मिले मुस्तकिल हजारो को,
हर कोई 'सहगल' नही होता.
*बाज़= कुछ, चंद
*कोढ़ी=२०[20-20]
-मंसूर अली हाशमी
नो[No] में वैसे ही बल नही होता,
शान्ति में; जैसे छल नही होता.
कच्चे नारयल में ये मिलेगा पर,
पक्के पत्थर में जल नहीं होता.
सच्चे साधू में मिल भी जाएगा,
हर कोई बा-अमल नही होता.
बाज़* पाए [ई ] बहुत ही सुन्दर पर,
फूल हर एक कमल नही होता.
उसके घर आज आयेंगे- युवराज!
झोंपड़ा क्यां महल नही होता?
कल न आया न आने वाला है,
आज करलो कि कल नही होता.
उसकी कीमत ज़्यादा होती है,
जिसका कोई भी दल नही होता
ऑनलाईन चलन हुआ जबसे,
मिलना अब आजकल नही होता.
अस्मिता भी चुरायी जाती है,
राज 'मन-से' बदल नही होता.
कोढ़ी-कोढ़ी* में बिक ही जाना है,
टीम-वर्क गर सफल नही होता.
ग़म मिले मुस्तकिल हजारो को,
हर कोई 'सहगल' नही होता.
*बाज़= कुछ, चंद
*कोढ़ी=२०[20-20]
-मंसूर अली हाशमी
Tuesday, September 22, 2009
Sallu Miyaa
[With Sallu it is sometimes difficult to keep his shirt on....T. O. I./21.09.09]
Shirt [शर्त?]
पहन लूँ या निकालूं फर्क क्या है,
दिखाऊँ या छुपाऊं हर्ज क्या है,
मैं हर सूरत बिकाऊं शर्त? क्या है,
बताएं कोई इसमें तर्क क्या है?
जो बाहर हूँ, मैं अन्दर से वही हूँ,
मगर Under की दुनिया से नही हूँ,
गलत कितना हूँ मैं कितना सही हूँ,
''दसो-का-दम'' हूँ मैं बेदम नही हूँ.
मिरी हीरोईनों में तो हया है,
लिबासों में सजी वो पुतलियाँ है,
नही गर एश तो में कैफ* में हूँ,
असिन, रानी है आयशा टाकिया है.
*खुमार
Shirt [शर्त?]
पहन लूँ या निकालूं फर्क क्या है,
दिखाऊँ या छुपाऊं हर्ज क्या है,
मैं हर सूरत बिकाऊं शर्त? क्या है,
बताएं कोई इसमें तर्क क्या है?
जो बाहर हूँ, मैं अन्दर से वही हूँ,
मगर Under की दुनिया से नही हूँ,
गलत कितना हूँ मैं कितना सही हूँ,
''दसो-का-दम'' हूँ मैं बेदम नही हूँ.
मिरी हीरोईनों में तो हया है,
लिबासों में सजी वो पुतलियाँ है,
नही गर एश तो में कैफ* में हूँ,
असिन, रानी है आयशा टाकिया है.
*खुमार
Saturday, September 19, 2009
Panch-Tantra
तंग होती दुनिया
जहाँ मेहमान भगवन बनके आता,
था हरएक का हरएक से कोई नाता,
जहाँ ,दिन रात होती थी दिवाली,
अंधेरे में ये अब क्यों खो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
नई रस्मों की है अब वाह - वाही,
लगी है बनने माँ अब बिन ब्याही,
सफेदी को है खा बैठी स्याही,
बदरवा बिन भी रैना हो गई है
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
फिज़ाओं में चमक थी रौशनी थी,
हवाओं में भी कैसी ताज़गी थी,
अमावस में चंदरमा खो गया है,
खिजाओं से क्या यारी हो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
बदलती जा रही है चाल देखो,
लपेटे है शनि का जाल देखो,
गुरु लगता है अब पामाल देखो,
कभी केतु तो राहू से ठनी है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
नगद, चीजों का बिकना रुक गया है,
चलन में जाली रुपया जुट गया है,
हमारा सब्र भी अब खुट गया है,
उधारी ही उधारी हो गई है.
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
परिंदों ने कमी की फासलों में ,
चरिंदे भी रुके है रास्तो में,
सितारे छुप गए है बादलो में ,
हवा भी लगती, जैसे थम गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
शहर में हर कोई बीमार क्यों है,
मसीहा भी दिखे लाचार क्यों है,
रसायन भी बने हथियार क्यों है,
उलट गिनती शुरू क्या हो गई है?
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
खुलेगा पंचतंत्रों का गठन क्या?
छुटेगा पंच तत्वों का मिलन क्या?
गिरेगा इस धरा पर ये गगन क्या?
सितारों की यही तो आगही है!
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
-मंसूर अली हाशमी
जहाँ मेहमान भगवन बनके आता,
था हरएक का हरएक से कोई नाता,
जहाँ ,दिन रात होती थी दिवाली,
अंधेरे में ये अब क्यों खो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
नई रस्मों की है अब वाह - वाही,
लगी है बनने माँ अब बिन ब्याही,
सफेदी को है खा बैठी स्याही,
बदरवा बिन भी रैना हो गई है
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
फिज़ाओं में चमक थी रौशनी थी,
हवाओं में भी कैसी ताज़गी थी,
अमावस में चंदरमा खो गया है,
खिजाओं से क्या यारी हो गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
बदलती जा रही है चाल देखो,
लपेटे है शनि का जाल देखो,
गुरु लगता है अब पामाल देखो,
कभी केतु तो राहू से ठनी है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
नगद, चीजों का बिकना रुक गया है,
चलन में जाली रुपया जुट गया है,
हमारा सब्र भी अब खुट गया है,
उधारी ही उधारी हो गई है.
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
परिंदों ने कमी की फासलों में ,
चरिंदे भी रुके है रास्तो में,
सितारे छुप गए है बादलो में ,
हवा भी लगती, जैसे थम गई है,
बहुत छोटी ये दुनिया हो गयी है.
शहर में हर कोई बीमार क्यों है,
मसीहा भी दिखे लाचार क्यों है,
रसायन भी बने हथियार क्यों है,
उलट गिनती शुरू क्या हो गई है?
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
खुलेगा पंचतंत्रों का गठन क्या?
छुटेगा पंच तत्वों का मिलन क्या?
गिरेगा इस धरा पर ये गगन क्या?
सितारों की यही तो आगही है!
बहुत छोटी ये दुनिया हो गई है.
-मंसूर अली हाशमी
Friday, September 18, 2009
तो क्या?/So What?
तो क्या?
भीड़ से जो लोग* डरते है,
भेड़(cattle) से हो उन्हें परहेज़ तो क्या?
सुख वो सत्ता का छोड़ दे कैसे,
शूल की भी भले हो सेज़ तो क्या?
अपनी कुर्सी तो हम न छोड़ेंगे,
छिन जो जाए हमारी मेज़ तो क्या?
क्या कमी है यहाँ 'फिजाओं'* की, [*चाँद की प्रेमिका]
मिल न पाया अगर दहेज़ तो क्या?
अपनी रफ़्तार हम न बदलेंगे,
है ज़माना अगर ये तेज़ तो क्या?
फ़िक्र ozone की करे क्यों हम,
हम न होंगे! बढ़े ये Rays तो क्या !
एक लड़का भी चाहिए हमको,
बहू को फिर चढ़े है Days तो क्या?
*मगरूर साहब
-मंसूर अली हाशमी
भीड़ से जो लोग* डरते है,
भेड़(cattle) से हो उन्हें परहेज़ तो क्या?
सुख वो सत्ता का छोड़ दे कैसे,
शूल की भी भले हो सेज़ तो क्या?
अपनी कुर्सी तो हम न छोड़ेंगे,
छिन जो जाए हमारी मेज़ तो क्या?
क्या कमी है यहाँ 'फिजाओं'* की, [*चाँद की प्रेमिका]
मिल न पाया अगर दहेज़ तो क्या?
अपनी रफ़्तार हम न बदलेंगे,
है ज़माना अगर ये तेज़ तो क्या?
फ़िक्र ozone की करे क्यों हम,
हम न होंगे! बढ़े ये Rays तो क्या !
एक लड़का भी चाहिए हमको,
बहू को फिर चढ़े है Days तो क्या?
*मगरूर साहब
-मंसूर अली हाशमी
Lover/माशूक
माशूक (III)
[नोट:- Interview की पहली दो कड़ी अवश्य पढ़े Scrolling down... :
"इश्क'' और ''आशिक'' के बाद संशोधित "माशूक" [प्रेमिका] इस सिलसिले की अन्तिम कड़ी पेशहै:-
ब्लोगरी [उर्फ़ पतंग]:- "तमे वापस आवी गया काका [uncle]? मुझे देखते ही वह सहसा अपनी घर की भाषा में बोल पड़ी।
म.ह:- कुछ प्रश्न बच गए है।
पतंग:= पूछो but ...
m.h.:- ....no personal questions please., मैंने उसका वाक्य पूरा कर दिया।
पतंग:- ..तो आप उससे मिल आए?
म.ह।:- इसी लिए यहाँ आना पड़ा कि तुम्हारे blog titles भी तो जान लूँ ।
पतंग:- interesting, संयोग से मेरा हर टाइटल या तो उनके टाइटल का byeproduct है या outcome है।
म.ह:- जैसे कि ?
पतंग:- सबसे पहले तो मैंने उसके 'दिल' पर 'धड़कन' दे डाली,फिर उसके 'कान' ब्लॉग पर 'शौर' मचा डाला
म .ह:- वह! क्या बात है। तुम्हारा हिन्दी साहित्य में दिलचस्पी का प्रेरक?
पतंग:- मेरे घर में हिन्दी की सभी मैगजीन आती है, उसमे जो तलाश करो मिल जाता है।
म.ह। :- और कोई विशेष ब्लॉग?
पतंग:- उसके 'होंठ ' पर मेरा 'kiss' तो super hit गया, एक इंग्लिश couple की फोटो भी छाप
दी थी support में।
म.ह।:- आगे क्या इरादा है?
पतंग:- उसके forth coming ' गला' के लिए मेरी आवाज़ लगभग तैयार है, आज रिलीज़ भी कर दूंगी और 'कमर' के लिए 'लचक' की study कर रही हूँ ।
म.ह। :- यानि आज-कल पढ़ाई -लिखाई सब बंद?
पतंग:- नही बल्कि exam की copy में यह सब लिख डालो तो और ज़्यादा marks आते है, १-२ supplimentry copy भी जोड़ना पड़ती है।
म.ह:- कोई मुश्किल तो नही होती 'उनके' हर ब्लॉग का जवाब देने में?
पतंग:- होती है ना! उनकी 'आँखे' के लिए मेरा 'आंसू' निकल ही नही पा रहा। मैं तो हँसते-हंसाते रहती हूँ । काश! मैंने एकता कपूर के सीरियल देखे होते, सुना है वह तो आंसुओं का खजाना है?
म.ह। :- कोई रोचक प्रसंग ?
पतंग:- बहुत ही रोचक, शायद प्रक्रति मेरा इस मामले में साथ दे रही है।
म.ह।:- किस मामले में?
पतंग:- दो ब्लोग्स वो कभी भी नही लिख पाएंगे, नही तो मेरी तो हालत ही ख़राब हो जाती!
म.ह।:- कौन- कौन से ?
पतंग:- एक तो वही भावना वाली 'नाक', अगर सचित्र लिखता तो...oh!shit..... मुझे उसका bye product देना पड़ता। कैसा असाहित्यिक कृत्य....भगवान ने बचा लिया।
म.ह। :- और दूसरा?
पतंग:- kidney वाला.....और फ़िर उसका bye-product , oh God! क्या करती?
म.ह:- और तुमने अपना नाम क्यो नही बताया 'उसे'?
पतंग:- बताया है मगर पहेली में? कि " मैं तुम्हारे नाम का bye प्रोडक्ट हूँ , उसका 'स्त्रीलिंग हूँ। उसको "सुचित्रा" का विचार ही नही आ रहा है, बुद्धू कही का!। अपने सिस्टम सॉफ्टवेअर ट्रांसलेटर में "स्त्रीलिंग" शब्द तलाश लिया तो उसने न जाने क्या बता दिया कि उसको दिन भर हिचकियाँ [hi-cup] ही आती रही, कई लीटर पानी पीने बाद भी, तब से उसने नाम पूछना ही छोड़ दिया है।
म.ह:-'आवाज़' का ट्रेलर नही सुनाओगी ?
पतंग: हाज़िर है.....
"हवा के 'दौश' पे होकर सवार चलती है,
जुदा हुई जो ये लब * से तो फ़िर न मिलती है"
म.ह: पतंग तुम्हारी उड़ान तो अच्छी रही, अब मैं जुदा सॉरी विदा होता हूँ , goodluck , all the best.
*कन्धा , * होंठ
-मंसूर अली हाश्मी.
[नोट:- Interview की पहली दो कड़ी अवश्य पढ़े Scrolling down... :
"इश्क'' और ''आशिक'' के बाद संशोधित "माशूक" [प्रेमिका] इस सिलसिले की अन्तिम कड़ी पेशहै:-
ब्लोगरी [उर्फ़ पतंग]:- "तमे वापस आवी गया काका [uncle]? मुझे देखते ही वह सहसा अपनी घर की भाषा में बोल पड़ी।
म.ह:- कुछ प्रश्न बच गए है।
पतंग:= पूछो but ...
m.h.:- ....no personal questions please., मैंने उसका वाक्य पूरा कर दिया।
पतंग:- ..तो आप उससे मिल आए?
म.ह।:- इसी लिए यहाँ आना पड़ा कि तुम्हारे blog titles भी तो जान लूँ ।
पतंग:- interesting, संयोग से मेरा हर टाइटल या तो उनके टाइटल का byeproduct है या outcome है।
म.ह:- जैसे कि ?
पतंग:- सबसे पहले तो मैंने उसके 'दिल' पर 'धड़कन' दे डाली,फिर उसके 'कान' ब्लॉग पर 'शौर' मचा डाला
म .ह:- वह! क्या बात है। तुम्हारा हिन्दी साहित्य में दिलचस्पी का प्रेरक?
पतंग:- मेरे घर में हिन्दी की सभी मैगजीन आती है, उसमे जो तलाश करो मिल जाता है।
म.ह। :- और कोई विशेष ब्लॉग?
पतंग:- उसके 'होंठ ' पर मेरा 'kiss' तो super hit गया, एक इंग्लिश couple की फोटो भी छाप
दी थी support में।
म.ह।:- आगे क्या इरादा है?
पतंग:- उसके forth coming ' गला' के लिए मेरी आवाज़ लगभग तैयार है, आज रिलीज़ भी कर दूंगी और 'कमर' के लिए 'लचक' की study कर रही हूँ ।
म.ह। :- यानि आज-कल पढ़ाई -लिखाई सब बंद?
पतंग:- नही बल्कि exam की copy में यह सब लिख डालो तो और ज़्यादा marks आते है, १-२ supplimentry copy भी जोड़ना पड़ती है।
म.ह:- कोई मुश्किल तो नही होती 'उनके' हर ब्लॉग का जवाब देने में?
पतंग:- होती है ना! उनकी 'आँखे' के लिए मेरा 'आंसू' निकल ही नही पा रहा। मैं तो हँसते-हंसाते रहती हूँ । काश! मैंने एकता कपूर के सीरियल देखे होते, सुना है वह तो आंसुओं का खजाना है?
म.ह। :- कोई रोचक प्रसंग ?
पतंग:- बहुत ही रोचक, शायद प्रक्रति मेरा इस मामले में साथ दे रही है।
म.ह।:- किस मामले में?
पतंग:- दो ब्लोग्स वो कभी भी नही लिख पाएंगे, नही तो मेरी तो हालत ही ख़राब हो जाती!
म.ह।:- कौन- कौन से ?
पतंग:- एक तो वही भावना वाली 'नाक', अगर सचित्र लिखता तो...oh!shit..... मुझे उसका bye product देना पड़ता। कैसा असाहित्यिक कृत्य....भगवान ने बचा लिया।
म.ह। :- और दूसरा?
पतंग:- kidney वाला.....और फ़िर उसका bye-product , oh God! क्या करती?
म.ह:- और तुमने अपना नाम क्यो नही बताया 'उसे'?
पतंग:- बताया है मगर पहेली में? कि " मैं तुम्हारे नाम का bye प्रोडक्ट हूँ , उसका 'स्त्रीलिंग हूँ। उसको "सुचित्रा" का विचार ही नही आ रहा है, बुद्धू कही का!। अपने सिस्टम सॉफ्टवेअर ट्रांसलेटर में "स्त्रीलिंग" शब्द तलाश लिया तो उसने न जाने क्या बता दिया कि उसको दिन भर हिचकियाँ [hi-cup] ही आती रही, कई लीटर पानी पीने बाद भी, तब से उसने नाम पूछना ही छोड़ दिया है।
म.ह:-'आवाज़' का ट्रेलर नही सुनाओगी ?
पतंग: हाज़िर है.....
"हवा के 'दौश' पे होकर सवार चलती है,
जुदा हुई जो ये लब * से तो फ़िर न मिलती है"
म.ह: पतंग तुम्हारी उड़ान तो अच्छी रही, अब मैं जुदा सॉरी विदा होता हूँ , goodluck , all the best.
*कन्धा , * होंठ
-मंसूर अली हाश्मी.
litrature, politics, humourous
दिल - गुर्दे पर ब्लॉग
Monday, September 14, 2009
Blogging-4
बलागियात-4
[पूर्व प्रकशित - संपादित/संवर्धित , Blogging लेबल पर अन्य रचनाओं के लिए:-
visit .... http://mansooralihashmi.blogspot.com/search/label/Blogging
टेक्नीकल ब्लॉग बनते है,
मेकेनिकल ब्लॉग बनते है,
पॉलिटिकल ब्लॉग बनते है,
हिस्तरिकल ब्लॉग बनते है.
टेक्निक को सरल बनाता ब्लॉग,
कागजी भी मशीन चलाता ब्लॉग,
झूठ-सच को उलट-पलट करता,
'इति' को 'हास' [य] में बदलता ब्लॉग।
सच का पैमाना ले के बैठेंगे,
झूठ को बर्फ से भी तोलेंगे,
छोड़ कर हम तो north-south को,
सिर्फ़ अपनी ही पोल [pole] खोलेंगे।
'न्याय'* का दम तो हम भी भरते है,
' दाल-रोटी' से प्यार करते है,
'भडास' हम भी निकाल ही लेंगे,
इसी पर्यावरण में पलते है।
वो जो 'छींटे' उड़ा रहा है कहीं,
हमको तकनीक भी सिखाता है,
और 'तकनीक दृष्टा' एक जनाब,
इक ग़ज़ल रोज़ ही सुनाता है.
बैठने से ज़्यादा उड़ता है,
क्या गज़ब तश्तरी पे करता है.
Nostalgia का हो के शिकार,
इन दिनों खूब आह भरता है.
गौ के एक स्वामी भी है यहाँ,
पुस्तकों को भी अब तो पाले है.
धूम उनकी ग़ज़ल की रहती है,
उनके उस्ताद भी निराले है.
एक शब्दों के जादूगर भी है,
नाम और काम से वो 'कर' भी है.
'ताऊ' है, 'भाऊ' और 'सीमा' है ,
एक ब्लॉगर जी चिपलूनकर भी है.
बादलों से भी झांकता प्रकाश,
राज़ बतलाती रजिया आपा है ,
दत्त जी झान बाँटते हरदम,
पूरी संगीतमय संगीता है.
वाणी होती नशर ब्लागों की,
चिट्ठो से है भरा जगत सारा,
सेवा भाषा की सब ही करते है,
जो न टिप्याया वह गया मारा.
कुछ विषय का यहाँ नही टौटा
जो लुढ़क जाए बस वही लोटा,
Dust Bin ही नही तो डर कैसा,
चल जो निकला नही रहा खोटा.
आओ बैठे , ज़रा सा गौर करे,
पहले हम ख़ुद को ही तो bore करे,
छप ही जाएगा नाम चित्र सहित,
पीछे चिल्लाये कोई शोर करे!
नर को नारी बनादो चलता है,
बिल को खाई बतादो चलता है,
तिल से हम ताड़ तो बनाते है,
राई होवे पहाड़ चलता है।
-मंसूर अली हाश्मी
[नोट:. inverted coma के शब्द एवम विभिन्न रंग ब्लॉग टाइटल/ब्लोगर्स को इंगित करते हुए है../*तीसरा खंबा ]
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झूठ-सच को उलट-पलट करता,
'इति' को 'हास' [य] में बदलता ब्लॉग।
सच का पैमाना ले के बैठेंगे,
झूठ को बर्फ से भी तोलेंगे,
छोड़ कर हम तो north-south को,
सिर्फ़ अपनी ही पोल [pole] खोलेंगे।
'न्याय'* का दम तो हम भी भरते है,
' दाल-रोटी' से प्यार करते है,
'भडास' हम भी निकाल ही लेंगे,
इसी पर्यावरण में पलते है।
वो जो 'छींटे' उड़ा रहा है कहीं,
हमको तकनीक भी सिखाता है,
और 'तकनीक दृष्टा' एक जनाब,
इक ग़ज़ल रोज़ ही सुनाता है.
बैठने से ज़्यादा उड़ता है,
क्या गज़ब तश्तरी पे करता है.
Nostalgia का हो के शिकार,
इन दिनों खूब आह भरता है.
गौ के एक स्वामी भी है यहाँ,
पुस्तकों को भी अब तो पाले है.
धूम उनकी ग़ज़ल की रहती है,
उनके उस्ताद भी निराले है.
एक शब्दों के जादूगर भी है,
नाम और काम से वो 'कर' भी है.
'ताऊ' है, 'भाऊ' और 'सीमा' है ,
एक ब्लॉगर जी चिपलूनकर भी है.
बादलों से भी झांकता प्रकाश,
राज़ बतलाती रजिया आपा है ,
दत्त जी झान बाँटते हरदम,
पूरी संगीतमय संगीता है.
वाणी होती नशर ब्लागों की,
चिट्ठो से है भरा जगत सारा,
सेवा भाषा की सब ही करते है,
जो न टिप्याया वह गया मारा.
कुछ विषय का यहाँ नही टौटा
जो लुढ़क जाए बस वही लोटा,
Dust Bin ही नही तो डर कैसा,
चल जो निकला नही रहा खोटा.
आओ बैठे , ज़रा सा गौर करे,
पहले हम ख़ुद को ही तो bore करे,
छप ही जाएगा नाम चित्र सहित,
पीछे चिल्लाये कोई शोर करे!
नर को नारी बनादो चलता है,
बिल को खाई बतादो चलता है,
तिल से हम ताड़ तो बनाते है,
राई होवे पहाड़ चलता है।
-मंसूर अली हाश्मी
[नोट:. inverted coma के शब्द एवम विभिन्न रंग ब्लॉग टाइटल/ब्लोगर्स को इंगित करते हुए है../*तीसरा खंबा ]
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