तो क्या?
भीड़ से जो लोग* डरते है,
भेड़(cattle) से हो उन्हें परहेज़ तो क्या?
सुख वो सत्ता का छोड़ दे कैसे,
शूल की भी भले हो सेज़ तो क्या?
अपनी कुर्सी तो हम न छोड़ेंगे,
छिन जो जाए हमारी मेज़ तो क्या?
क्या कमी है यहाँ 'फिजाओं'* की, [*चाँद की प्रेमिका]
मिल न पाया अगर दहेज़ तो क्या?
अपनी रफ़्तार हम न बदलेंगे,
है ज़माना अगर ये तेज़ तो क्या?
फ़िक्र ozone की करे क्यों हम,
हम न होंगे! बढ़े ये Rays तो क्या !
एक लड़का भी चाहिए हमको,
बहू को फिर चढ़े है Days तो क्या?
*मगरूर साहब
-मंसूर अली हाशमी
भीड़ से जो लोग* डरते है,
भेड़(cattle) से हो उन्हें परहेज़ तो क्या?
सुख वो सत्ता का छोड़ दे कैसे,
शूल की भी भले हो सेज़ तो क्या?
अपनी कुर्सी तो हम न छोड़ेंगे,
छिन जो जाए हमारी मेज़ तो क्या?
क्या कमी है यहाँ 'फिजाओं'* की, [*चाँद की प्रेमिका]
मिल न पाया अगर दहेज़ तो क्या?
अपनी रफ़्तार हम न बदलेंगे,
है ज़माना अगर ये तेज़ तो क्या?
फ़िक्र ozone की करे क्यों हम,
हम न होंगे! बढ़े ये Rays तो क्या !
एक लड़का भी चाहिए हमको,
बहू को फिर चढ़े है Days तो क्या?
*मगरूर साहब
-मंसूर अली हाशमी
3 comments:
वाकई बहुत अच्छा लिखते हैं मंसूर साहब आप। पहले भी मैंने आपको पढ़ा है।
hashami ji, aap se milna chahata hoon... samaya v sthan batayen...
pankaj vyas ratlam
॰ पंकज व्यास:
धन्यवाद व्यासजी, आपका स्वागत है।
मैरा मोबाईल नम्बर:
9300674622
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