Sunday, April 22, 2012

आज का भजन


 आज का भजन 

[भजन का 'अर्थ' समझने के लिए ...

‘कुछ’ तो हो सकता है निर्मल नरुला का

एकोऽहम्  

की 'कुंजी' अवश्य खरीदे ! ]

अब और तू 'निर्मल' को 'न'-'रुला',
तुझ पर भी होवेगी 'कृपा', 
जो बीत गया सो बीत गया,
मत शोर मचा, मत शोर मचा.


बीता कल तो था 'हज़ारी' का, 
'बाबा' है ये तो 'करोड़ी' का,
एक बेग 'ब्लेक' ज़रा ले आ,
जितना चाहे उसमे भरजा.


कर चुके 'सरस्वती' की वंदना,
'लक्ष्मी' संग 'उल्लू' पर चढ़ जा.
इस 'दूध' में 'फेन' नहीं है ज़रा,
आजा, मुख पर 'मक्खन' मलजा !

'कागज़' पत्तर तू फाड़ दे सब,
'इन्साफ' में लगती देर बहुत,
अब क्या 'उपमा' दे, कबीर भगत ?
'रूई' भी हुई 'अग्नि-रोधक' !


http://aatm-manthan.com

Monday, April 16, 2012

खींचो किसी की टांग तो बनती है कविता !


खींचो किसी की टांग तो बनती है कविता !

अजित वडनेरकर जी, कवियों से पंगा लेने 'ब्लेक होल' में जाने की हिम्मत नहीं, 'कविता' ही की कुछ ख़बर इस तरह ली है.....आपकी  'अकविता' [Face Book पर ]
से प्रेरणा पाकर...
शब्दों से छेड़-छाड़ से 'बनती' है कविता,
अर्थो से भी खाली हो तो 'बिकती' है कविता.

बे-दाम ब्लागों पे अब छपती है कविता,
मंचो पे पढ़ी जाए तो 'दिखती' है  कविता.

'काका'* कभी पढ़ते थे तो 'हंसती' थी कविता,            *हाथरसी
जोकर  भी सुनाये है, तो 'रोती'  है कविता,

'हूटिंग' अगर हो जाये , बिलखती है कविता,
बिजली जो हुई गुल तो सिसकती है कविता.

नखराली 'शायरा' कभी पढ़ती है कविता,
गिरती है कविता, कभी पड़ती है कविता.

'बलात' इस का 'कार' भी होते हुए  देखा,
लिक्खे कोई, नाम 'उनके' ही, छपती है कविता.

सब की ही बनी जाती है भाभी, ये 'सविता'
शादी से भी पहले अभी जनती है 'कविता'. 

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mansoor ali hashmi 

Thursday, April 12, 2012

कुछ कर तो रहे है !


कुछ कर तो रहे है !
["बलाए-ताक नहीं, बालाए-ताक सही " "शब्दों का सफ़र" की बालाए - कैसे बनी बलाए !]

'बालाए ताक़' रखके*  'बला' टाल रहे है,             *कोर्ट के निर्णय को 
'अफज़ल' हो कि 'कस्साब' हो हम पाल रहे है.

'बिंदु' जो कभी थे वो हिमालय से लगे अब,
'रेखाओं' के नीचे जो है, पामाल रहे है.

बदली 'परिभाषा , मनोरंजन की तो देखो,
अब 'बार की बालाओं' को वो 'ताक' रहे है !
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बालाई पे बैठे है,कशिश भी है 'बला' की,
हम कूचा-ए-यारां की सड़क नाप रहे है.






गालो पे फ़िदा हो के तो 'बलमा' वो बने थे,
रूख्सार के 'बल'*, 'बालो' से अब ढांप रहे है.        *सिलवट 










होती 'अल-बला' तो वो टल जाती दुआ से,
अब 'हार'* बन गयी है तो बस जाप रहे है!         *माला 


'मेहराब' तलक  अब तो रसाई नही होती,
'तक' कर ही मियाँ हांप रहे, काँप रहे है !



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--mansoor ali hashmi 


Wednesday, April 4, 2012

बदलती परिभाषाएं !


बदलती परिभाषाएं !

पारदर्शिता' का सन्देश हुआ यूं व्यापक,

नग्न होने को ज़रूरत नहीं हम्माम की अब.

'साफगोई' का चलन जब से बढ़ा, ये देखा,
गालियों से भी क़दर बढ़ती है, इंसान की अब.

हुस्न के, जिस्म के, बदले है मआनी कैसे, 
लो उठा शोर,कि शर्ट फटती है, 'सलमान' की अब.








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बदलता ज़माना !

'चारागर' ही को ज़रूरत है, मुआलिज की अभी,
खुद 'मुआलिज' ही भरोसे पे है भगवान के अब. 

अब 'रफूगर' का गिरेबाँ ही मिला चाक हमें,
पैराहन फैंक दिया, 'मजनूं' ने किस शान से अब

'दार्शनिक' ख़ुद को दिखाने पे तुले है अबतो,
थे जो 'प्रसिद्द', वही दिखते है, अनजान से अब.

अब तो 'ईमान' की दाढ़ी में दिखे है तिनके,
और 'चोरो' को निगहबानी के फरमान है अब.

'राहबर' है मुतलाशी, किसी भटके जन का,
'राहज़न', फर्मारवाओं के जो मेहमान है अब.

'ज्ञान-भंडार' सुरक्षित हुए अब 'चिप्सो' में,
'पुस्तकालय', नज़र आते है, वीरान से अब.

'सब्र' ने फाड़ दिया अपना ही दामन अबतो,
'जब्र' के खेमे में होने लगी सुनवाई है अब.

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-- mansoor ali hashmi 

Friday, March 23, 2012

परीक्षा .....चरवाहे की !


परीक्षा .....चरवाहे की !
आज [२३-०३-२०१२] के समाचार पत्रों से प्रेरित.....




# अपनी 'भेड़ो' को हांक लाये है,
'पर्वतो' से ये भाग आये है.
# भेड़े वैसे तो शोर करती नहीं,
फिर भी 'गुपचुप' हंकाल लाये है.
# 'ऊन' है, 'दूध-ओ-गोश्त' है  इनमे,
इस लिए तो ये दिल लुभाए है. 



# 'भेड़े' बनकर न 'घोड़े' बिक जाए,
खौफ़ इनको यही सताए है.
# 'चारागाह' और भी है 'चरवाहे',
मुफ्त का 'चारा' सब को भाये है.
# 'पंजा' बालो को नोच ले न कहीं,
'संघ' के आश्रय में लाये है,
# खौफ़ है बेवफाई का इनसे !
यूं 'महाकाल' याद आये है !!
 --mansoor ali hashmi

Wednesday, March 21, 2012

NEW FORMULA


[भविष्य

by Gyandutt Pandey
"भविष्य जो आप देखते हैं, वह भविष्य आपको मिलता है।"]
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सुन्दर डर्टी पिक्चर 
आई. टी. में है 'भविष्य' ; ये  जानकर ,   
'कर्नाटक' में हमने अपनाया इसे,   
'मोबाईल' से ही चला था काम वां, 
'आई.पोड' अब मिल गया 'गुजरात' में. 
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कम करना है ग़रीबी, तो कम कर ग़रीब को !
थी योजना 'भविष्य' की, ग़ुरबत घटाएंगे,
रेखा 'अमीरी' ही की, अब आगे बढ़ाएंगे,  
इक रात में करोड़ों को इस पार ले लिया,
"इस तरह " भविष्य आपका उज्जवल बनाएंगे!

-Mansoor ali Hashmi

Friday, February 24, 2012

चौपाई[याँ] (यानी चार पैरों वाली कुर्सी)

चौपाई[याँ]  (यानी चार पैरों वाली कुर्सी)



और 'येद्दू' को न अब  तड़पाईए,
खोयी गद्दी फिर उसे दिलवाईये.
आप बिन 'नाटक' अधूरा सा लगे,
आईये, आ जाईये, आ जाईये.


'पोर्टफोलियो' कुछ अभी खाली पड़े,
पाव दर्ज़न मंत्री भी हट चुके !
{देखने के 'जुर्म' से है 'पट' चुके}
'खाने-पीने' से सभी है डर रहे,
आईये, ख़ा जाईये, ख़ा जाईये !

टीम 'आधी' आप ही के  साथ है,
दिख रहा 'पंजे' नुमा इक 'हाथ' है,
'shake' करले 'hand' मत शर्माईये,
भाग्य अपने फिर से अब अज़माईए, 

आप 'Ready' है तो 'रेड्डी' साथ है,
पहल  करना 'राजनैतिक' पाठ है,
जो है सत्ता में उसी के ठाठ है,
आज का 'चाणक्य' बन दिखलाईये !

आईये, आजाईये, आजाईये !
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mansoor ali hashmi


पढ़ न सके तो 'वाह' तो देते ही जाईये !

पढ़ न सके तो 'वाह' तो देते ही जाईये !


'थप्पड़' से काम न चले, 'घूंसा' लगाईये,
गर है 'प्रिंस' गुस्सा तो आना ही चाहिए.

हासिल न जीत हो सके, लख कोशिशो के बाद,
फर्जी बयानबाजी के छक्के लगाईये.

बल्ले से रन, न बोल से चटके विकेट जब,

क्रिकेट छोड़कर के कबूतर उड़ाईये.

अनशन हो कारगर, न ही भाषण से लाभ हो,
हरिद्वार जाके चैन की बंसी बजाईए.

सब्जेक्ट 'dull' हो टाईटल भड़कीला दीजिए,
नुस्खा ये कारगर है, ज़रा आजमाईये .

होली पे गालियों का मज़ा और ही है कुछ,
एकाध पोस्ट आके ज़रा ठेल जाईये.


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mansoor ali hashmi

-mansoor ali hashmi 

Tuesday, February 21, 2012

चल जाता है कुछ काम 'उधारी' से कमोबेश !


चल जाता है कुछ काम 'उधारी' से कमोबेश !

[Banker:-   "शब्दों का सफ़र" किसी कंपेश को जानते हैं आप ? ]

'शब्दों का सफ़र' 'जाल' पे जारी है निरंतर,
नज़राने लिए 'ज्ञान' के हरसू से कमोबेश.

जब  'मन' की उदासीनता लिखने नहीं देती,
'शब्दों का सफ़र' देता है अलफ़ाज़ कमोबेश.

अब 'जास्ती' लिखने का 'नक्को' फायदा कोई,
कमेंट्स तो मिलते है, "बहुत ख़ूब" कमोबेश. 

छीने है ग्लेमर ने जो पौशाक जिसम से,
रहने दिये कपड़े तो है, फेशन ने कमोबेश.

बाबू है निठल्ले, अजी करते नहीं कुछ काम,
'रिश्वत' है तो चल जाती है गाड़ी तो कमोबेश.

चटखारे बहुत देता है 'भ्रष्टो' का ये 'अचार',
मौसम में 'चुनावों' के तो चलता है कमोबेश.

हम  झूठ के अंबार में क्या ढूँढ़ रहे है ?
उम्मीद कि मिल आएगा इक सच तो कमोबेश !

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Mansoor ali Hashmi

Wednesday, February 8, 2012

'Rose Day' पर 'काँटा' लगा !


'Rose Day'  पर 'काँटा' लगा !


'सामग्री' व्यस्को ही की, हम देख रहे थे !
'कुर्सी' न ही 'माईक' कहीं हम फेंक रहे थे,
'कर-नाटकी' माहौल में रोमांस बड़ा है, 
दिल में न था कुछ मैल, 'नयन' सेंक रहे थे,

मालूम न था हम को कि होवेगी फजीहत,
दोहराएंगे अब हम नहीं, 'मोबाइली' हरकत,
'सो' लेते तो होती न 'ख़राब' अपनी तबियत,
बच जाए अगर 'कुर्सी' तो होवेगी गनीमत.

हम सोच रहे थे कि सुरक्षित है, जगह ये,
कानूनों के 'ऊपर' ही तो रहती है जगह ये,
'आयुक्त' या 'अन्ना' की दख़ल होगी नही याँ,
महँगी पड़ी 'बाबाजी' बड़ी हमको  जगह ये. 

'दिन वेंलेंटाईन' का अब फीका ही रहेगा,
चिंता ये नहीं है कि ज़माना क्या कहेगा,
बदनाम ये मीडिया तो हमें बहुत करेगा,
पर अगले 'इलेक्शन' तक ये किसे याद रहेगा ?

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mansoor ali hashmi