कुछ कर तो रहे है !
'बालाए ताक़' रखके* 'बला' टाल रहे है, *कोर्ट के निर्णय को
'अफज़ल' हो कि 'कस्साब' हो हम पाल रहे है.
'बिंदु' जो कभी थे वो हिमालय से लगे अब,
'रेखाओं' के नीचे जो है, पामाल रहे है.
बदली 'परिभाषा , मनोरंजन की तो देखो,
अब 'बार की बालाओं' को वो 'ताक' रहे है !
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बालाई पे बैठे है,कशिश भी है 'बला' की,
हम कूचा-ए-यारां की सड़क नाप रहे है.
गालो पे फ़िदा हो के तो 'बलमा' वो बने थे,
रूख्सार के 'बल'*, 'बालो' से अब ढांप रहे है. *सिलवट
होती 'अल-बला' तो वो टल जाती दुआ से,
अब 'हार'* बन गयी है तो बस जाप रहे है! *माला
'मेहराब' तलक अब तो रसाई नही होती,
'तक' कर ही मियाँ हांप रहे, काँप रहे है !
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--mansoor ali hashmi