ग्लोबल हुआ बाज़ार !
मुल्को की तरक्की का पैमाना है 'व्यापार',
इम्पोर्ट है 'इस पार' तो एक्सपोर्ट है 'उस पार'.
--mansoor ali hashmi
[कृपया हमें वापरें…व्यापार करें….....शब्दों की आवाजाही, 'शब्दों का सफ़र' से ...'आत्ममंथन' पर भी होती रहती है....]
इम्पोर्ट है 'इस पार' तो एक्सपोर्ट है 'उस पार'.
'व्यापार' में घोटाले है, 'घोटालो' का व्यापार,
इन्साफ करे कौन ? जब ताजिर बनी सरकार.
करता है 'सफ़र' माल तो संग चलती है तहज़ीब* [ *संस्कृति]
'शब्दों' का भी 'व्यापार' से होता है सरोकार.
रंग भरता ज़िन्दगी में, नयन होते है जब चार,
'cupid' भी कर रहा है ,यहाँ देखो कारोबार.
"उपयोग करो - फेंको" , का अब दौर है ये तो,
इन्सां भी लगे अबतो 'मताअ', कूचा-ए-बाज़ार.
तहज़ीब के, क़द्रों के, क़दर दान बहुत कम,
दौलत का सगा है कोई, मतलब से बना यार.
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5 comments:
सही सही कही आपने
वर्तमान पर धारदार टिप्पणी हैं आपकी ये पंक्तियॉं।
बढ़िया!
दुनिया में सब से पहले जब तिजारत आरंभ हुई तो उस की जरूरत के कारण सत्ता (राज्य) अस्तित्व में आया था। कोई भी राज्य वास्तव में उस की जनता के हित के लिए अस्तित्व में नहीं होता। वह केवल सब से संपन्न वर्गों का होता है।
आप ने उसी को स्पष्ट किया है अपनी इस रचना में।
बहुत खूब हाश्मी साब...द्विवेदी जी की विवेचना से सहमत हूँ ।
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