Sunday, November 15, 2009

अवमूल्यन /devaluation

अवमूल्यन 

जो बे हुनर थे आज वो इज्ज़त म'आब* है,
अच्छे भलो का देखिये ख़ाना खराब है.


ताउम्र भागते रहे जिसकी तलाश में,
पाया ये बिल अखीर* के वो तो सराब* है.


संस्कार और शरीअते सिखलाने वालो के,
हाथो में हमने देखा कि उलटी किताब है.


जीरो पे है फुगावा निरख* आसमान पर,
उलटा है गर ज़माना तो उलटा हिसाब है.


सब्जेक्ट, ऑब्जेक्ट है; फिर कैसा इम्तिहाँ?
हैरान से खड़े ये सवाल-ओ-जवाब है.

*प्रतिष्ठित,  अंत में,  मृग-तृष्णा   ,  दाम[मूल्य]


मंसूर अली हाशमी 

2 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

Aakhri sher kuch nayi-puraani baat ek saath kah rahe hain.

Ye andaaz pasand aaya.

Science Bloggers Association said...

बहुत ही प्यारे शेर कहे हैं, बधाई स्वीकारें।
एक सुझाव है कृपया फांट एक ही कलर में रखें, पढने में तकलीफ होती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }