अनाड़ी-खिलाड़ी
जंग अब भी जारी है,
जूतम-पैजारी है।
कारगिल से बच निकले,
किस्मत की यारी है।
खेल कर चुके वह तो,
अब हमारी बारी है।
एल,ई,टी ; जे-हा-दी,
किस-किस से यारी है?
मज़हब न ईमाँ है,
केवल संसारी है।
सिक्के सब खोटे है,
कैसे ज़रदारी है?
पूरब तो खो बैठे,
पश्चिम की बारी है!
-मन्सूर अली हशमी
5 comments:
मन्सूर अली हाशमी साहब जी आप बहुत अच्छा लिखते है.ओर कहा कि बात कहा कर जाते है, अबुत खुब्सुरत...सलाम है आप की कलम को.
एल,ई,टी; जिहादी,
किस-किस से यारी है?
मज़हब न ईमाँ है,
नर है न नारी है।
आप का बंलाग का लिंक कही खो गया था.
धन्यवाद
सचाई बयाँ कर दी है।
नववर्ष की शुभकामनाएँ
हाशमी साहब गजल अच्छी लगी नए साल में भी यूं ही लिखते रहें। ढेर सारी शुभकामनाएं
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