Wednesday, December 31, 2008

Foul Player

अनाड़ी-खिलाड़ी

जंग अब भी जारी है,
जूतम-पैजारी है।


कारगिल से बच निकले,
किस्मत की यारी है।

खेल कर चुके वह तो,
अब हमारी बारी है।

एल,ई,टी ; जे-हा-दी,
किस-किस से यारी है?


मज़हब न ईमाँ है,
केवल संसारी है।


सिक्के सब खोटे है,
कैसे ज़रदारी है?


पूरब तो खो बैठे,
पश्चिम की बारी है!


-मन्सूर अली हशमी

5 comments:

राज भाटिय़ा said...

मन्सूर अली हाशमी साहब जी आप बहुत अच्छा लिखते है.ओर कहा कि बात कहा कर जाते है, अबुत खुब्सुरत...सलाम है आप की कलम को.
एल,ई,टी; जिहादी,
किस-किस से यारी है?

मज़हब न ईमाँ है,
नर है न नारी है।
आप का बंलाग का लिंक कही खो गया था.
धन्यवाद

दिनेशराय द्विवेदी said...

सचाई बयाँ कर दी है।

Vinay said...

नववर्ष की शुभकामनाएँ

Vinay said...
This comment has been removed by the author.
ब्रजेश said...

हाशमी साहब गजल अच्छी लगी नए साल में भी यूं ही लिखते रहें। ढेर सारी शुभकामनाएं