ग़ज़ल-1
जुस्तजूं* में उनकी हम जब कभी निकलते है,
साथ-साथ मन्ज़िल और रास्ते भी चल्ते है।
दौर में तरक्की के दिल लगाके अब मजनूँ,
रोज़ एक नई लैला आजकल बदलते है।
ता-हयात मन्ज़िल पर वो पहुंच नही सकते,
मुश्किलों के डर से जो रास्ते बदलते है।
ज़िन्दगी की राहों में हाशमी वह क्यों भटके,
जो जवाँ इरादों को साथ ले के चलते है।
*तलाश
-मन्सूर अली हाशमी।
7 comments:
सबसे पहले तो आप और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
ढेरो बधाई आपको...
अर्श
आज तो गज़ब ढा रहे हैं,
खूबसूरत कविताओं के बाद गजल भी?
नया साल आए बन के उजाला
खुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||
नूतन वर्ष मंगलमय हो |
ता-हयात मन्ज़िल पर वो पहुंच नही सकते,
मुश्किलों के डर से जो रास्ते बदलते है।
बहुत ही अच्छी रचना...बधाई
आप को भी नव वर्ष की शुभ कामनाएं...
नीरज
ज़िन्दगी की राहों में हाशमी वह क्यो भटके,
जो जवाँ इरादों को साथ ले के चलते है।
bahut khub.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
ढेरो बधाई आपको...
बहुत बढ़िया, आपकी ग़ज़ल से रूबरू होते अच्छा लगा!
Post a Comment