अब ब्लागों पे जंग जारी है,
धर्म वालो में बेकरारी है।
अब निबाह ले हम अपना राज-धरम ,
कौमवादो की बन्टाढारी है.
चीर-हरण हो रहा द्रोपदी का,
देखिये कितनी लम्बी साड़ी है?
मूल्य चढ़ते है ,कद्रें* गिरती है,
अर्थ-नीति पे कौन भारी है?
अपने घर में भी हम नही महफूज़,
जंग किससे ये अब हमारी है।
लोक का तंत्र ही सफल होगा,
गिनते जाओ ये मत-शुमारी है,
आग अब 'ताज'' तक नही पहुंचे ,
आपकी-मेरी जिम्मेदारी है।
*values
-मंसूर अली हाशमी
4 comments:
अपने घर में भी हम नही महफूज़,
जंग किससे ये अब हमारी है।
-बेहतरीन ’हाशमी’ साहेब. बहुत खूब कहा!
dhanywaad sameer sahab,
waqyii aap udan tashtri par sawar hai, ghazab speedd hai aapki.
aur phir travelling MODE mein to aap ghazab ka likhte hai, phir wo plain ki ho ya train ki. ek baar hamare yahan aakar 'tanga' [horse-cart] ki
sawari karle....mujhe ummedd hai ki esa karke aap duniya ka behtrin blog likh dalenge. jug-jug jiyo laal.
M.H.
bahut sundar..ekdum sahi baat kahi aapne..
well written
Post a Comment