भड़ास {rachna bhi prastut hai.....bhadasiyo ki hi bhasha hai.... }
आप-साहब, श्रीमान, जनाब, महाशय और शिष्टाचारी रूपी सारे वह शब्द हम त्याग दे जिसे बोलते समय हमारा आशय सद नही होता। सदाशयताका विलोप तो जाने कब से हो गया। क्यों न हम यथार्थवादी बन सचमुच जो शब्द हमारी सोच में है, तीखे, भद्दे ,गन्दे, गालियों से युक्त,विषमय परंतु कितने आनंद दायक जब हमें उसे प्रयोग करने का कभी सद अवसरप्राप्त होता है।क्यों न हम यह विष वमण कर दे, और इसे तर्क संगत साबित करने के लिये,इतिहास की गर्त में सोये दुराचारो, अनाचारो, अत्याचारो के गढ़े मुर्दे बेकफ़न कर दे! अच्छा ही होगा, हमे बद हज़मी से भी ज़्यादा कुछ हो गया है, हमारा सहनशील पाचक मेदा अलसर ग्रस्त हो गया है! और मुश्किल यह है कि हमे लगातार तीखे मिर्च-मसाले खिलाये जा रहे है-- धर्म के, दीन के, स्वर्निम इतिहास की अस्मिता के नाम पर,जबकि नैतिक पतन के इस दौर में ये शब्द अर्थ-हीन होते जा रहे है।मज़हब की अफ़ीम से , नींद आ भी जाये परन्तु 'अल्सर' तो दुरस्त नही होगा।इस अल्सर को कुरैद कर काट कर उसमें से अपशब्दो को बह लेने दो। इसमें मरने का तो डर है, परन्तु अभी जो स्थिति है उससे बेह्तर है। मैने तो सभ्य बनने की कौशिश में शिष्टाचार का जो आवरण औढ़ रखा है उसमें गालियां भी दुआए बन कर प्रवेश होती है। परन्तु अप शब्दो का मैरे पास भी टोटा नही, छोटपन दिखाने के लिये मैरा कद भी आप से कम छोटा नही। शब्दो के मैरे पास वह बाण है कि धराशायी कर दूंगा तमाम कपोल-कल्पित मान्यताओ को, वीरान इबादत गाहो को, परन्तु नमूने की कुछ ही बानगी परोस कर ही मै यह दान-पात्र आपके बीच छोड़ना चाह्ता हूँ. इस अवसर को महा अवसर मान कर बल्कि महाभारत जान कर कूद पड़ो रण में अपने-अपने विषाक्त शब्द बाणो को ले कर!
यह दान-पात्र है…
लोकतन्त्र@धर्मनिर्पेक्षता.विषवमण्॰काँम
Note:- आपकी उल्टियों (अभिव्यक्तियों) को प्रकाशित करने के लिये 'सामना' तत्पर है, इलेक्त्रोनिक मीडिया हाज़िर है, जली हुई रेल-गाड़ी प्रस्तुत है प्रदेश ही नही देश भर में आपका संदेश प्रसारित करने के लिये…!!!
मन्सूर अली हाशमी
5 comments:
बड़े भैया! कहाँ ले चले हम को उन्ही बदबूदार गलियों में जहाँ के लोग सफाई करने आने वालों को मारने लगते हैं।
मिर्च मसाले की असर इतनी तेज हो गई है कि करीब 80 प्रतिशत लोगों के मन से लेकर जबान तक सभी काले पड़ गए हैं। एक अच्छे पोस्ट के लिए धन्यवाद।
sahi farmaya aapne..
masur bhai aap kahan hain vapas aa gaye ya nahi
bhadaas me jabardast likha hai
masur bhai aap kahan hain vapas aa gaye ya nahi
bhadaas me jabardast likha hai
शब्दो के मैरे पास वह बाण है कि धराशायी कर दूंगा तमाम कपोल-कल्पितमान्यताओ को,वीरान इबादत गाहो को, परन्तु नमूने की कुछ ही बानगीपरोस कर ही मै यह दान-पात्र आपके बीच छोड़ना चाह्ता हुँ।
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