ब्लागियात-3
चलते-फिरते ब्लॉग बनते है,
गिरते-पड़ते ब्लॉग बनते है,
कुछ कहो तो ब्लॉग बनते है,
चुप रहो तो ब्लॉग बनते है।
बन सके तो ब्लॉग लिख डालो,
सारा अच्छा ख़राब लिख डालो,
अपने मन की किताब लिख डालो,
ख़ुद ही अपना हिसाब लिख डालो।
तुम जो चूके तो कोई लिख देगा,
'लेने वाला' तो तुम को क्या देगा,
जो छुपानी है बात कह देगा,
जग हसाई की बात कह देगा।
लिख नही सकते कोई बात नही,
अब दवात-ओ-कलम की बात गई,
दब के अक्षर उभरते है अबतो,
है ज़माना नया है बात नई.
पढ़ना अक्षर भी हमको न आवत,
कोनू स्कूल को भी न जावत,
छोड़ दो अब मजाक ओ भय्या,
हमसे अच्छा ब्लॉग का पावत?
-मंसूर अली हाश्मी
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