शम्मी कपूर
एक समय में अरब मुल्को में खासकर लेबनान,जोर्डन ,कुवैत वगेरह में शम्मी कपूर का जादू चलता था। 'जंगली' वाला ज़माना था वह। याहूँ तो यहाँ खूब गूंजा, सिर्फ़ नौजवानों में ही नही सब तबको में। 'याहूँ' काल की यादें आज भी पुराने लोगों के दिलो में स्थापित है। desktop पर पहुँचने वाला याहू भी इसी नस्ल का है, इसका मुझे कोई अंदाज़ नही।
फिर 'तीसरी मन्ज़िल के musical songs ने भी हम से ज़्यादा अरबो को ही नचाया था। शम्मी कपूर की कद-काठी , रंग-रूप में अरब लोगों को अपने जैसी ही झलक मिलती थी । खासकर तबियत की 'शौखी' इसको तो ये लोग अपनी ही विरासत समझते है।
शम्मी कबूर [अरबी भाषा में 'प' स्वर के आभाव से बना उच्चारण] का दो दशक तक यहाँ एक छत्र राज कायम रहा।
इन देशो के मूल निवासियों के अतिरिक्त यहाँ बसे हुए एशियन मूल के लोगों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा भारतीय रंगकर्मियों और फिल्मो की लोकप्रियता को बढ़ावा देने में।
अब ग्लोबलाइजेशन के दौर में कलाकारों को जो 'मेवा' खाने मिल रहा है, वह उनकी सेवाओ के मुकाबले में कई गुना ज़्यादा है। भाग्यशाली है आज के अनेक कलाकार!
एक और भारतीय सांस्कृतिक राजदूत 'शम्मी कपूर' को मेरा सलाम।
मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से]
4 comments:
आपने शम्मी कपूर को सही याद किया, अब याहू डॉट कॉम उन्हें और भी याद दिलाएगा।
दादा !!आपने रोचक बात बतायी शम्मी कपुर के बारे मे !!धन्यवाद
शम्मी कपूर को हमारा भी सलाम!!
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