ब्लागियात-१०
स्वयं के लिये:- [ पत्नी का प्रहार.........ब्लोगर्स होशियार!]
लिखते-लिखते यह तुम को क्या सूझी,
नुक्ता चीनी पे क्यों उतर आए?
'हाश्मी' तुम शिकारी शब्दों के,
खींचा-तानी पे क्यो उतर आए?
सर को down करो है बंद server,
रोक लो अब कलम मेरे दिलबर,
कितने पन्ने स्याह कर डाले....
अब ज़रूरत है आपकी घर पर.
-जी , मैं {m}ही हूँ {h} , [किसी से न कहना]
2 comments:
baht badhiya badhai .
कितने पन्ने स्याह कर डाले....
अब ज़रूरत है आपकी घर पर.
लिखते बहुत खूब हैं
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