Friday, September 5, 2008

Animality

पशु-धर्म

साम्प्रदायिक दंगा?
नही, बल्कि 'साम्प्रदयिक झगड़े जैसा कुछ' , लग रहा था लोगों को।
इनमें तिलक-धारी भी थे, टोपी-धारी भी, अनेकानेक अन्य भी,
तालियाँ बजाते हुए,अटठहास करते हुए लोग,
सर फुटव्वल की आवाज़े,
झूमते हुए लोग,
खून की धार बह निकलना,
सहमते हुए लोग!
भागते हुए लोग ?
ज़ख़्मों से चूर,
थक कर,
लाचार से बैठे हुए,
दो निरीह प्राणी,
कौन?
एक हिन्दू की बकरी,
एक मुसलमान की गाय्।














ख़ामोशी से एक दूसरे को टकते हुए,
दर्शको के अद्रश्य हो जाने पर,
बकरी मिमियायी ,
गाय रम्भायी,
दौनो को एक-दूसरे की बात समझ में आयी,
बकरी गाय की पीठ पर सवार हुई,
गाय उसे पशु-चिकित्सालय के द्वार पर छोड़ आयी।
Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
मन्सूर अली हाशमी
चैनल: Blog
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4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाह क्या बात है। मेरे एक पडौसी है। अंसारी जी। उन्हें जैसी सेवा गाय की और माँ की करते देखा वैसी शायद हम दस जन्मों में भी न कर पाएँ।

Udan Tashtari said...

सही है-बेहतरीन लिखा!!

Gyan Dutt Pandey said...

पशु बुद्धि मानव की कुटिल बुद्धि से कहीं ज्यादा सेंसिबल!
यह छोटी सी पोस्ट का आत्म-मन्थन अच्छा लगा मन्सूर अली जी।
पता नहीं सन १९८५ से २००३ के बीच में उन समयों पर रतलाम में थे या नहीं जब मैं वहां पदस्थ था!

Anonymous said...

सुन्दर |